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पूरे भारत में पूजा प्रक्रिया और अनुष्ठान क्षेत्रों और परंपराओं के अनुसार थोड़े अलग है। लोग गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की तारीख से 2-3 महीने पहले विभिन्न आकारों में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति बनाना शुरू कर देते हैं। लोग घर में किसी उठे हुए प्लेटफार्म पर या घर के बाहर किसी बड़ी जगह पर सुसज्जित तंबू में गणेश जी की मूर्ति रख देते हैं ताकि लोग देखें और पूजा के लिए खड़े हो सकें। लोगों को अपने स्वयं या किसी भी निकटतम मंदिर के पुजारी को बुलाकर सभी तैयारी करते हैं। कुछ लोग इन सभी दिनों के दौरान सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ध्यान करते हैं। भक्त नहाकर मंदिर जाते हैं या घर पर पूजा करते हैं। वे पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा करके प्रसाद अर्पित करते हैं। लोग मानते हैं कि इस दिन चांद नहीं देखना चाहिए और भगवान में अविश्वास करने वाले लोगों से दूर रहना चाहिए।
लोग पूजा खासतौर पर लाल सिल्क की धोती और शॉल पहनकर करते हैं। भगवान को मूर्ति में बुलाने के लिये पुजारी मंत्रों का जाप करते हैं। यह हिन्दू रस्म प्राणप्रतिष्ठा अर्थात मूर्ति की स्थापना कहलाती है। इस अनुष्ठान का एक अन्य अनुष्ठान द्वारा अनुगमन किया जाता है, जिसे षोष्ढषोपचार अर्थात गणेश जी को श्रद्धांजलि देने के 16 तरीके कहा जाता है। लोग नारियल, 21 मोदक, 21 दूव- घास, लाल फूल, मिठाई, गुड़, धूप बत्ती, माला आदि की भेंट करते हैं। सबसे पहले लोग मूर्ति पर कुमकुम और चंदन का लेप लगाते हैं और पूजा के सभी दिनों में वैदिक भजन और मंत्रों का जाप, गणपति अथर्व संहिता, गणपति स्त्रोत और भक्ति के गीत गाकर भेंट अर्पित करते हैं।
गणेश पूजा भाद्रपद शुद्ध चतुर्थी से शुरू होती है और अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होती है। 11 वें दिन गणेश विसर्जन नृत्य और गायन के साथ सड़क पर एक जुलूस के माध्यम से किया जाता है। जलूस, “गणपति बप्पा मोरया, घीमा लड्डू चोरिया, पूदचा वर्षी लाऊकारिया, बप्पा मोरया रे, बप्पा मोरया रे” से शुरू होता है अर्थात् लोग भगवान से अगले साल फिर आने की प्रार्थना करते हैं। लोग मूर्ति को पानी में विसर्जित करते समय भगवान से पूरे साल उनके अच्छे और समृद्धि के लिये प्रार्थना करते हैं। भक्त विसर्जन के दौरान फूल, माला, नारियल, कपूर और मिठाई अर्पित करते हैं। लोग भगवान को खुश करने के लिए उन्हें मोदक भेंट करते हैं क्योंकि गणेश जी को मोदक बहुत प्रिय है। ये माना जाता है कि इस दिन पूरी भक्ति से प्रार्थना करने से आन्तरिक आध्यात्मिक मजबूती, समृद्धि, बाधाओं का नाश और सभी इच्छाओं की प्राप्ति होती है।
वायु पुराण के अनुसार, यदि कोई भी भगवान कृष्ण की कथा को सुनकर व्रत रखता है तो वह (स्त्री/पुरुष) गलत आरोप से मुक्त हो सकता है। कुछ लोग इस पानी को शुद्ध करने की धारणा से हर्बल और औषधीय पौधों की पत्तियाँ मूर्ति विसर्जन करते समय पानी में मिलाते है। कुछ लोग इस दिन विशेष रूप से अपने आप को बीमारियों से दूर रखने के लिये झील का पानी का पानी पाते है। लोग शरीर और परिवेश से सभी नकारात्मक ऊर्जा और बुराई की सत्ता हटाने के उद्देश्य से विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश के आठ अवतार (अर्थातअष्टविनायक) की पूजा करते हैं। यह माना जाता है कि गणेश चतुर्थी पर पृथ्वी पर नारियल तोड़ने की क्रिया वातावरण से सभी नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने में सफलता को सुनिश्चित करता है।
पंडित दयानंद शास्त्री, उज्जैन (म.प्र.) (ज्योतिष-वास्तु सलाहगाड़ी) 09669290067, 09039390067
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