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कुल्लू। तीर्थस्थानों तक पहुंचना काफी मुश्किल होता है, लेकिन इन सभी में लाहुल से कुगती जोत होकर मणिमहेश महादेव (Manimahesh Mahadev) तक पहुंचने का रास्ता सबसे दुर्गम और मुश्किल माना जाता है। समूचा हिमालय शिव शंकर का स्थान है और उनके सभी स्थानों पर पहुंचना बहुत ही कठिन होता है। चाहे वह अमरनाथ हो, केदानाथ हो, नीलकंठ हो या कैलाश मानसरोवर। इसी क्रम में एक और स्थान है मणिमहेश महादेव का स्थान। अमरनाथ यात्रा (Amarnaath Yatra) में जहां लोगों को करीब 14000 फीट की चढ़ाई करनी पड़ती है तो लाहुल से पैदल मणिमहेश महादेव के दर्शन के लिए 16568 फीट कुगती जोत के खतरनाक ऊंचाई पर चढ़ना होता है।
कहते हैं कि लाहुल के शिव के भक्तों के लिए मणिमहेश महादेव की यात्रा काफी मायने रखती है। यही कारण है कि दुर्गम रास्तों को पार कर और अपनी जान जोखिम में डालकर श्रद्धालु भगवान भोलेशंकर (Lord Shiva) के दर्शन के लिए जाते हैं। इस रूट में श्रद्धालु पांच पड़ाव के बाद छठे दिन लाहुल से मणिमहेश पहुंचते हैं।
यात्रा के पड़ाव :
इस साल पोरी मेला के आख़िरी दिन 18 अगस्त को भोलेनाथ के जयकारों के बीच त्रिलोकनाथ मंदिर (Triloknath Temple) से 6 महिलाओं के साथ 103 शिव भक्तों का दल मणिमहेश यात्रा के लिए निकले थे। किशोरी गांव के मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद पैदल आगे निकले और सिंदवाड़ी गांव के नीचे दल ने बारिश के बीच पहली रात बिताई। इसी जत्थे में शामिल त्रिलोकनाथ गांव के भोलेभक्त सुमन चंद लारज़े ने बताया कि श्रद्धालुओं का दूसरा पड़ाव रापे गांव के ऊपर और तीसरे दिन का रात्रि पड़ाव अल्यास में होता है। चौथे दिन केलंग बाज़िर के मंदिर में पहुंचते हैं। चेले से गुर बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लंबी होती है।
केलंग बाज़िर के मंदिर में देवखेल के बीच गुर मानदंडों को पूरा करने वाले नए चेलों को गुर का उपाधि देते हैं। अगली सुबह पांचवें दिन केलंग मंदिर से दल ने यात्रा फिर शुरू की और अल्यास में रात बिताई और छठे दिन शुक्रवार को श्रद्धालु मणिमहेश झील पहुंचे। लाहुल से मणिमहेश महादेव तक पहुंचने का रास्ता सबसे दुर्गम और मुश्किल माना जाता है। बता दें जो भी लोग लाहौल से मणिमहेश महादेव के दर्शन करने के लिए कुगती जोत होकर जाना चाहते हैं वह बिना रजिस्ट्रेशन के जा सकते हैं। मन में अगर सच्ची श्रद्धा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा को भी पार किया जा सकता है। पथरीले पहाड़ों और बर्फ पर नंगे पांव कई भक्तों ने यात्रा का कठिन सफर तय किया है।
लाहुल से मणिमहेश आने वाले कई यात्रियों को सफल यात्रा करने के बाद लाहुल में अपने घर भोले भगवान को समर्पित जातर का आयोजन भी करना पड़ता है जिसे `धणी जातर’ के नाम से जाना जाता है।
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