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सर्दियों में लाल चींटी की चटनी खाते हैं यहां के लोग, जानें क्या है इसके पीछे वजह
Last Updated on December 11, 2020 by
जमशेदपुर। झारखंड के जमशेदपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर चाकुलिया प्रखंड का मटकुरवा गांव पड़ता है। इस गांव में अधिकतर लोग आदिवासी(Tribal) समाज से संबंध रखते हैं. घने जंगलों के बीच बसा ये गांव मूलभूत सुविधाओं (Basic facilities) और आधुनिकता से काफी दूर है। जाहिर है कि लोगों का जीवन यापन भी काफी अलग होगा। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जिस लाल चींटी (Red ant) को देखते ही हमारे शरीर में कंपन होना शुरू हो जाता है, इस गांव के लोग उस चींटी की चटनी खाने के शौकीन हैं।
आदिवासी समाज के लोगों की मान्यता है कि ठंड के दिनों में अगर इस चींटी की चटनी खाई जाए तो ठंड भी नहीं लगेगी और भूख भी अच्छे से लगेगी। इस चींटी में टेटरिक एसिड(Tetric acid) होता है जो शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है। आदिवासी लोगों के अनुसार ठंड पड़ते ही यहां के साल और करंज के पेड़ों पर लाल चींटी अपना घर बना लेती है। इनका घर चारों तरफ पत्तों से ढका होता है। चींटियों के घर पेड़ पर काफी ऊंचाई पर बनता है। जब चींटी पेड़ पर आना-जाना शुरू करती है, तो गांव के युवा पेड़ पर चढ़कर इनके घर को टहनी के साथ तोड़ कर लाते हैं, फिर इसको एक बड़ी से हांडी में झाड़ते हैं ताकि सभी चींटियों को एक जगह किया जा सके। इसके बाद घर की महिलाएं उसे पत्थर की बड़ी सी सिल पर रखती हैं और उसमें नमक, मिर्च, अदरक, लहसुन मिलकर काफी बारीक पिस लेती हैं। करीब 30 मिनट पीसने के बाद सारी लाल चींटी मिक्स हो जाती हैं, फिर सभी लोग अपने-अपने घरों से साल का पत्ता लाकर उसमें चटनी रखते हैं और बांटकर खाते हैं.
चटनी को एक साल के बच्चे से लेकर 50 साल तक की उम्र के लोग खाते हैं। आदिवासियों के अनुसार ये चींटी साल में एक बार ही पेड़ पर आती है। इस चटनी को काफी सालों से खाया जाता है। आदिवासियों का कहना है कि वो खुद को स्वस्थ रखने के लिए लाल चींटी की चटनी खाते हैं। स्थानीय लोग इस कुरकु(kurku) भी कहते हैं।