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Triple Talaq: नई दिल्ली। तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 6 दिनों से चल रही सुनवाई गुरुवार को खत्म हो गई है। 5 जजों की बेंच ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। बुधवार को जब सुनवाई शुरू हुई तो पांच जजों की संविधान पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा कि क्या औरतें तीन तलाक को न कह सकती हैं।
पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील सिब्बल से चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने पूछा कि क्या महिलाओं को निकाहनामा के समय तीन तलाक को न कहने का विकल्प दिया जा सकता है। क्या सभी काजियों से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने तीन तलाक को ‘दुखदायी’ प्रथा करार देते हुए न्यायालय से अनुरोध किया कि वह इस मामले में ‘मौलिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में कदम उठाए।’ देश के बंटवारे के वक्त के आतंक तथा आघात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 को संविधान में इसलिए शामिल किया गया था, ताकि सबके लिए यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी धार्मिक भावनाओं के बुनियादी मूल्यों पर राज्य कोई हस्तक्षेप न कर सके।
तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से न्यायालय में पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि न्यायालय मामले पर पिछले 67 वर्ष के संदर्भ में गौर कर रहा है, जब मौलिक अधिकार अस्तित्व में आया था न कि 1,400 साल पहले जब इस्लाम अस्तित्व में आया था। उन्होंने कहा कि न्यायालय को तलाक के सामाजिक नतीजों का समाधान करना चाहिए, जिसमें महिलाओं का सबकुछ लुट जाता है। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष बराबर तथा कानून के समान संरक्षण का हवाला देते हुए जयसिंह ने कहा कि धार्मिक आस्था तथा प्रथाओं के आधार पर देश महिलाओं व पुरुषों के बीच किसी भी तरह के मतभेद को मान्यता न देने को बाध्य है।
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