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Uttarakhand: धूम-धाम से मनाया गया हरेला पर्व; आज रोपे जाएंगे 10 लाख पौधे
Last Updated on July 16, 2020 by Deepak
देहरादून। पहाड़ी संस्कृति और वहां के त्यौहारों की बात ही निराली होती है। उत्तराखंड (Uttarakhand) में सुख समृद्धि, पर्यावरण संरक्षण और प्रेम का प्रतीक हरेला लोक पर्व कुमाऊं क्षेत्र में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया गया। हरियाली के पर्व हरेला के मौके पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने आज पौध रोपण कर अभियान की शुरूआत की। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने राजभवन और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने आवास से हरेला (Harela) अभियान की शुरुआत की। हरेला पर्व पर आज वन विभाग करीब 7.5 लाख पौधे लगाएगा। जबकि करीब 2.5 लाख पौधे उद्यान विभाग की ओर से लगाए जाएंगे। बृहस्पतिवार से शुरू होकर यह अभियान 15 अगस्त तक चलेगा।
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16 जुलाई, #हरेला पर्व के पावन अवसर पर हर व्यक्ति 01 पौधा अवश्य लगाए और वृक्षारोपण के साथ ही जलस्रोतों के संरक्षण का भी संकल्प लें। इस बार कोविड-19 के कारण हरेला पर्व पर पहले की तरह कार्यक्रमों का आयोजन सम्भव नही है, परंतु हमारा पर्यावरण संरक्षण का अभियान निरंतर जारी रहना चाहिए। pic.twitter.com/sxTKQUfHco
— Trivendra Singh Rawat (@tsrawatbjp) July 15, 2020
पहले सीएम ने अपने सरकारी आवास पर पौधा लगाया। इसके बाद नालापानी क्षेत्र में पौध रोपण किया। इसके साथ ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को समर्पित ‘हरेला’ पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। यह त्योहार सम्पन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। उन्होंने कहा कि हरेला पर्व हमारी लोक संस्कृति, प्रकृति और पर्यावरण के साथ जुड़ाव का भी प्रतीक है। प्रकृति को महत्व देने की हमारी परंपरा रही है। प्रकृति के विभिन्न रूपों की हम पूजा करते हैं। हमारी इन परंपराओं का वैज्ञानिक आधार भी है।
यहां जानें क्या है हरेला पर्व
हरेला उत्तरखण्ड में मनाया जाने वाला वो पर्व है जो पर्यावरण व कृषकों से जुड़ा है। इस पर्व के दौरान 10 दिन पहले घरों में पुड़ा बनाकर पांच या 7 प्रकार के अनाज गेहूं, जौ, मक्का, गहत, सरसों समेत अन्य को बोया जाता है, जिसमें जल चढ़ाकर घरों में रोजाना इसकी पूजा की जाती है। किसान भी इस दौरान अपनी खेती की फसल की पैदावार का भी अनुमान लगाते हैं। लोक संस्कृति के जानकार बृजमोहन जोशी कहते हैं कि ये पर्व किसानों से सीधे जुड़ा है। किसान घरों में ही अनाजों को बोकर अपनी फसल का परीक्षण करता है कि इस बार उनकी खेती कैसी होगी और कितना फायदा होगा।