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नाहन। आज हम खबर को सिरमौर रियासतकाल के उन पन्नों से दे रहे हैं जो आज के आधुनिक युग की युवा पीढ़ी, तार-तार हो रहे रिश्तों व नातों के लिहाज से मिसाल साबित हो सकती है जो प्यार व मोहब्बत को महज एक मजाक मानते हैं। ऐतिहासिक शहर नाहन में आज भी एक ऐसी अद्भूत व अमर प्रेम कहानी अपने आप में एक मिसाल है। रियासतकाल में एक अंग्रेज अफसर की पत्नी ने अपने पति की बगल में दफन होने के लिए 38 साल मौत का लंबा इंतजार किया। दरअसल, अंग्रेजी मैडम लूसिया पियरसाल रियासतकाल में अपने पति डॉ इडविन पियरसाल के साथ यहां पहुंची थीं। लूसिया के पति डॉ इडविन पियरसाल महाराजा के मेडिकल सुपरिंटेडेंट थे। 11 साल तक महाराजा को सेवाएं देने के बाद डॉ पियरसाल का 19 नवंबर 1883 में इंतकाल हो गया। उस समय उनकी आयु 50 साल थी। महाराजा ने डॉ पियरसाल को पूरे सैनिक सम्मान के साथ नाहन शहर के ऐतिहासिक विला राउंड में दफन किया। खास बात यह थी कि डॉ पियरसाल ने इस जगह को स्वयं चुना था। इंतकाल के समय लेडी लूसिया 49 साल की थीं। डॉ पियरसाल की तरह लूसिया भी एक रहमदिल होने के साथ साथ लोकप्रिय महिला के तौर पर जानी जाती थी।
1885 में लूसिया ने भारी धन खर्च कर पति की कब्र को पक्का करवाया
बतातें हैं कि पति की मौत के बाद लूसिया इंग्लैंड वापस नहीं लौटी। लूसिया का अपने पति के साथ बेपनाह मोहब्बत का इसी बात से पता लगाया जा सकता था कि 1885 में लूसिया ने भारी धन खर्च कर अपने पति की कब्र को पक्का करवाया और इंग्लैंड न लौटकर अपने परिवार के सदस्यों को भी छोड़ दिया। लूसिया भी चाहती थी कि जब उसे मौत आए तो वह भी अपने पति की कब्र के साथ दफन हों। इसके लिए लूसिया ने 38 साल मौत का इंतजार किया। 19 अक्तूबर 1921 को आखिरकार वह घड़ी भी आ गई जब लूसिया का इंतजार खत्म हुआ और अपने पति को याद करते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। लूसिया की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए महाराजा ने सम्मान सहित लूसिया को भी उनके पति डॉ पियरसाल की कब्र की बगल में दफनाया। आज भी विला राऊंड नाहन स्थित कैथोलिक कब्रगाह में पियरसाल दंपति के अमर प्रेम की कहानी आने-जाने वालों को आकर्षित करती है। विला राउंड शहर की एक ऐतिहसिक सैरगाह है। लगभग अढ़ाई किलोमीटर लंबी इस सैरगाह में पियरसाल दंपति की साथ साथ कब्रगाहें बनी हैं। सैरगाह से गुजरने वाले राहगीरों के लिए दोनों की कब्रें एक मिसाल देतीं नजर आती हैं।
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