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हिमाचल: शिवरात्री पर्व पर मध्य सतलुज घाटी के गांवों में रातभर होता है शिव महिमा का गुणगान
Last Updated on March 10, 2021 by Sintu Kumar
आनी। महाशिवरात्री का पावन पर्व जहां समूचे भारतवर्ष में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं हिमाचल (himachal) के जिला शिमला, मंडी व जिला कुल्लू की मध्य सतलुज घाटी में यह पर्व आज भी प्राचीन परंपरा अनुसार मनाया जाता है। घाटी के लोगों के लिए यह पर्व बहुत विशेष है जिसका उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है। इस पर्व को अपने परिवार संग मनाने के लिए दूर पार गए नौकरीपेशा व अन्य कारोबारी लोग भी इस दिन अपने घरों को लौटते हैं। पर्व पर भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए तेल में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं। पर्व के दिन ग्रामीण हल्के में लोग अपने घरों में शिव मंडप को सुंदर ढंग से सजाते और मंडप में नींबू प्रजाति के केमटू से शिव स्वरूप सैईं को तैयार करते हैंए जिसमें जौ, पाजा, सरसों के फूल व पाजा की पत्तियां सजाई जाती हैं।
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शिव स्वरूप सैंई को घर के कोने में सजे मंडप के पास स्थापित किया जाता है और इसके नीचे भगवान भोले को प्रसन्न करने के लिए अनाज के ढेर, तेल में आटे से तरह तरह के बनाये पकवान, सनसे, बडे, बाकरू तथा रोट भी सजाए जाते हैं। इस दिन परिवार के लोग व्रत भी रखते हैं और सांयकाल में शिव पार्वती स्वरूप सैंई महादेव व गणपति तथा अपने ईष्ट देवता की पूजा आरती व अर्चना कर भगवान से सुख समृद्धि का आशिर्वाद लेते है। पर्व के दिन तेल में बने पकवानों को अपने कुटुम्ब के लोगों तथा संबंधितयों में बांटकर शिवरात्री पर्व (Shivratri festival) की बधाई दी जाती है।
पर्व पर कई ग्रामीण क्षेत्रों में मीट भात खाने का भी विशेष प्रचलन है। सांयकाल में भोजन आदि से निवृत होकर ग्रामीण घर घर जाकर प्राचीन संस्कृति का निर्वहन करते हुए भगवान शिवए श्रीराम और भगवान कृष्ण तथा हनुमान की लीलाओं को रातभर जती गीत के रूप में नाच, गाकर शिव, कृष्ण, राम व हनुमान भक्ति का खूब रस घोलते हैं, जो प्रातः चार बजे तक चलता रहता है। प्रातःकाल ब्रम्ह मुहर्त में सैई स्वरूप शिवजी को मंडप से बाहर विदा किया जाएगा। जिसे सैईं स्वाना कहते हैं। इस प्रकार शिवरात्रि का यह पर्व हो जाता है।