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केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन का आज 12वां दिन है और अपने घर से निकले किसान आज भी उसी जोश से कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद किये हैं। दिल्ली की कूच करने पर किसानों के काफिले को रोकने के लिए सुरक्षाबलों ने भरकस कोशिश की। किसानों को तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन छोड़ी, आंसू गैस के गोले दागे और सार्वजनिक संपत्ति तक को नुकसान भी पहुंचाया। सुरक्षा बलों ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हुए किसानों को रोकने के लिए सड़कों पर गड्ढे किये थे, जिसके चलते प्रदर्शन में शामिल किसानों को पूरी रात सड़क पर ही बितानी पड़ी।
देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे दिखाई पड़ते हैं, ठीक वैसे ही जब किसानों ने दिल्ली के लिए कूच की थी तो हरियाणा के सोनीपत के नजदीक हाईवे पर भी ठीक ऐसे ही दिख रहे थे. फर्क सिर्फ इतना है कि यहां गड्ढे नक्सलियों ने नहीं बल्कि सुरक्षा बलों के जवानों ने किये थे।
अगर आपको कभी अपने घर में एक पाइप लगवाने के लिए सार्वजनिक मार्ग की खुदाई करवानी पड़े तो इसके लिए आपको संबंधित विभाग से कानूनी प्रक्रिया के तहत कुछ दिन पहले अनुमति लेनी पड़ती है और इसके लिए आपको विभाग को नुकसान की भरपाई भी करनी पड़ती है। क्या किसानों को रोकने के लिए नेशनल हाइवे पर गड्ढे नियम-कानूनों का पालन करते हुए किये गए? क्या पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत सुरक्षाबलों ने ये कार्रवाई की? क्या सड़क पर गड्ढे करने के लिए नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया से अनुमति ली गई थी? क्या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की एवज में संबंधित विभाग को नुकसान की भरपाई की गई? इन सभी सवालों पर राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा समिति के पूर्व सदस्य और पेशे से वकील वीरेंद्र विशिष्ट ने RTI एक्ट के तहत सुचना मांगी है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां हर रोज कई विरोध प्रर्दशन होते हैं। सरकारी निर्णयों के विरोध पर प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए सड़कों पर गड्ढे करना किस हद तक सही है। विरेंद्र विशिष्ट के इन सवालों पर जवाब आना अभी बाकि है, जिसके बाद ही ये सपष्ट हो पाएगा कि कार्रवाई कानूनी है या गैरकानूनी।
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