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कर्जदार हिमाचल को क्या उम्मीदें थी क्या दे गए पीएम नरेंद्र मोदी
कांगड़ा। मोदी (Modi) का बिलासपुर (Bilaspur) दौरा हो गया। वहां पर उन्होंने एम्स का उद्घाटन (AIIMS Inauguration) कर जनता को समर्पित भी कर दिया। जनता भले ही खुशी मनाए पर असल में इस बात का भी ध्यान रखे कि हिमाचल पर 70 हजार करोड़ का कर्ज भी है। पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के बिलासपुर दौरे से कई उम्मीदें लगाई जा रही थीं कि वह ऐसी कोई बड़ी सौगात देकर जाएंगे कि कर्ज तले दबे हिमाचल (Himachal) को संबल मिल सके। एम्स तो बन ही गया था, इसका उद्घाटन आज नहीं तो कल हो जाता। कांग्रेस और लोगों ने तो यहां तक मांग की थी एम्स में अभी सुविधाएं पूरी नहीं हैं तो इसका उद्घाटन ना किया जाए। माना तो यह भी जा रहा है कि चुनावी बेला (Election Time) है तो एम्स का उद्घाटन तो एक बहाना था, असल में राजनीति को चमकाना था। दूसरी बात पीएम मोदी की चुनावी रैलियों पर करोड़ों के हिसाब से पैसा खर्च हो रहा है। पहले मंडी की रैली रद्द होने पर भी करोड़ों का खर्च हुआ था। कुल्लू दशहरे में भी यही आलम होगा। हिमाचल पहले से ही कर्जे में डूबा है तो क्या ऐसी दशा में ये रैलियां बहुत जरूरी हैं। इतना ही नहीं इसके लिए तमाम सरकारी अमले का उपयोग हो रहा है।
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उम्मीदें हिमाचल की धूमिल ही नहीं हुई हैं, आहत भी हुई हैं। यह बात भले ही अभी लोगों को आभास नहीं हो रही है पर बहुत जल्द आभास भी हो जाएगा। वैसे भी हकीकत से आंखें मूंद कर मनाई गई खुशी चिरस्थायी नहीं होती। दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह ने एम्स के उद्घाटन पर प्रदेशवासियों को घुटे मन से बधाई तो दी है मगर साथ में यह भी कह डाला है कि इसकी संरचना तो वर्ष 2017 में स्व वीरभद्र की सरकार ने ही रख डाली थी। कांग्रेस का काम विकास करना है और आगे भी विकास करवाती रहेगी।
चुनावी बेला है तो पीएम मोदी एम्स का उद्घाटन कर गए। इस दौरान उन्होंने पुरानी परंपरांओं को तो याद किया मगर जो पुराने वादे थे उन्हें ही याद नहीं किया। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने पहाड़ी बोलकर अपनापन जताने की चेष्टा (AIIMS Inauguration) तो की मगर प्रदेशवासियों को कितना अपना समझा, यह इस बात से ही पता चलता है कि उन्होंने कोई बड़ी सौगात नहीं दी। फिर इसे क्या समझा जाए। वीआईपी दौरों के लिए सरकार से लेकर प्रशासनिक अधिकारी हांफे हुए हैं। पुलिस बल तैनात है। सरकारी बसों का उपयोग हुआ है। इतना सब करने की मंशा यह थी कि कर्जदार हिमाचल की झोली में पीएम मोदी कुछ डाल जाते तो थोड़ी-बहुत कमर तो सीधी होती। इस बात को सरकार भी जानती है कि प्रदेश में महंगाई चरम पर है। बेरोजगारी बेइंतहा है। जरूरत कर्ज लेने तक की पड़ गई तो क्या हिमाचल सरकार (Himachal Government) ने भी गंभीरता से मुद्दा नहीं रखा कि सरकार रखना ही नहीं चाहती। चुनावी बेला है तो मतदाताओं को रिझाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। मगर सवाल यह है कि खाली हाथ मुंह में नहीं जाता।