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शीतला अष्टमी पर क्यों खाया जाता है बासी खाना, यहां पढ़े
Last Updated on April 4, 2021 by
हर वर्ष होली का त्योहार बीत जाने के बाद आने वाली चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी जिसे बसौड़ा भी कहा जाता है मनाया जाता है। शीतला अष्टमी के एक दिन पहले ही मां शीतला को भोग लगाने के लिए कई तरह के पकवान तैयार किए जाते हैं। इसके बाद अष्टमी पर मां को बासी भोग लगाकर उनको भोग लगाया जाता है। बसौड़ा का पर्व उत्तर भारत के कई राज्यों में विशेषकर राजस्थान में धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
शीतला अष्टमी तिथि और पूजा मुहूर्तः अष्टमी तिथि की शुरुआत 3 अप्रैलसे हो रही है। इसका समापन 4 अप्रैल तो होगा। शीतला माता का आशीर्वाद पाने के लिए सप्तमी और अष्टमी दोनों दिन व्रत किया जाता है।
शीतला अष्टमी व्रत का महत्वः शीतला अष्टमी व्रत की आराधना का तरीका एकदम अलग होता है। शीतलाष्टमी के दिन पहले यानी सप्तमी तिथि पर कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। फिर अष्टमी तिथि पर बासी पकवान देवी को चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि इस पर्व पर भोजन नहीं बनता बल्कि उसी चढ़े हुए बासी भोग को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है, इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।
मंत्र के जप से करें मां शीतला की आराधना
”ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः”
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
अर्थात्, मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं।
इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में झाड़ू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश में सभी तैतीस करोड़ देवी देवाताओं का वास रहता है, अतः इसके स्थापन-पूजन से घर-परिवार में समृद्धि आती है।
देवी माँ शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को करने का विधान है। इस पर्व पर शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है। भगवती स्वरूपा मां शीतला देवी की आराधना अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है।
प्रकृति के अनुसार शरीर निरोगी हो इसलिए भी शीतला अष्टमी का व्रत करना चाहिए। लोकभाषा में इस त्योहार को बासौड़ा भी कहा जाता है।कई जगहों पर शीतला को चेचक नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा उत्तर भारत में शीतला सप्तमी को बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है।
स्वास्थ्य रक्षा का संदेश छिपा है पूजा में: मां शीतला की पूजा-अर्चना का विधान भी अनोखा होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है, इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। शीतला माता के पूजन के बाद उस जल से आंखें धोई जाती हैं। यह परंपरा गर्मियों में आंखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है। माता का पूजन करने के बाद हल्दी का तिलक लगाया जाता है,घरों के मुख्यद्वार पर सुख-शांति एवं मंगल कामना हेतु हल्दी के स्वास्तिक बनाए जाते हैं। हल्दी का पीला रंग मन को प्रसन्नता देकर सकारात्मकता को बढ़ाता है,भवन के वास्तु दोषों का निवारण होता है।
पंडित दयानंद शास्त्री, उज्जैन (म.प्र.) (ज्योतिष-वास्तु सलाहगाड़ी) 09669290067, 09039390067
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