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world saparrow day : हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस आयोजित होता है। पहली बार 2010 में 20 मार्च को यह दिवस मनाया गया और बाद में इसे ही तय मान लिया गया। यह चिंता इसलिए है कि कुछ वर्षों पहले आसानी से दिख जाने वाला यह पक्षी अब तेजी से विलुप्त होता जा रहा है इसकी आबादी में 60 प्रतिशत की कमी आई है और यह ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। गौरैया आज के दौर में एक संकटग्रस्त पक्षी है इसलिए विश्व के पक्षी विशेषज्ञों ने इसे रेड लिस्ट में डाल दिया है। कम होती हरियाली और घरों के आसपास बने विषाक्त वातावरण ने गौरैया को गायब ही कर दिया है। इस दिवस के पीछे लुप्तप्राय होते इस घरेलू पक्षी के प्रति चिंता है। एक वक्त था जब हमारे घरों के भीतर-बाहर हमेशा मौजूद रही इसकी चहक…पंखों की फड़फड़ाहट रोजमर्रा की घरेलू आवाजों की तरह ही थी।
आज सुबह-सवेरे न तो वह चहक सुनाई देती है न ही घर में दोपहर को आंगन में बिखरे दानों को चोंच में दबाकर घोंसले की तरफ उड़ान की तैयारियां दिखती हैं। यह मात्र शहरीकरण का प्रभाव है। किसी भी प्रजाति को खत्म करना हो तो उसके आवास और भोजन को खत्म कर दो। यही कुछ हुआ है हमारी गौरैया के साथ गांवों का बदलता स्वरूप,फैलता शहरीकरण कृषि में रासायनिक खादें और जहरीले कीटनाशक गौरैया के खत्म होने के जिम्मेदार बने। खुले आंगन में फुदकने वाली, छप्परों में घोंसले बनाने वाली और बच्चों के हाथों से गिरी जूठन खाने वाली यह चिड़िया अब बंद जाली के आंगन और बंद दरवाजों की वजह से अपनी दस्तक नहीं दे पाती। कभी कभार अगर कमरे में दाखिल भी हो गई तो पंखे से टकरा कर मर जाती है। यह सब अनियोजित विकास की वजह से हो रह
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