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मां सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है। शिक्षा संस्थाओं में बसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परंपरा है। इसे प्रकारांतर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार सरस्वती हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है।साल 2020 में ये पर्व 29 जनवरी को मनाया जायेगा। इस दिन पंचमी तिथि का प्रारंभ सुबह 10 बजकर 45 मिनट से हो जायेगा। ऐसे में सरस्वती पूजन किस दिन करना शुभ रहेगा जानिए क्या कहते हैं शास्त्र।
बसंत पंचमी यानी माघ शुक्ल पंचमी तिथि को ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का विधान है इसलिए हर साल इस दिन पंडालों और घरों में देवी सरस्वती की प्रतिमा और तस्वीर को रखकर पूजा की जाती है। इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा ने जीव-जंतुओं और मनुष्यों उत्पन्न किया और इन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन कुछ पल में उन्हें ऐसा लगने लगा कि उनकी सृष्टि मूक है, इनमें जीवित होने का अहसास ही नहीं है। इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव से अपनी समस्या बताई। शिवजी के कहने पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुईं। उस स्त्री के एक हाथ में वीणा थी और दूसरा हाथ वरमुद्रा में था। बाकी दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जलधारा से कलकल का स्वर फूटने लगा। हवा सरसर की आवाज से बहने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। देवी सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी, वीणापाणी और वाग्देवी समेत कई नामों से देवताओं और ऋषियों ने नमस्कार और पूजन किया। ब्रह्माजी ने देवी सरस्वती को वसंत पंचमी के दिन ही प्रकट किया था इसलिए इस दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव और पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।
श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥
श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।
वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥
स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।
ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥
या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः।
सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥
॥इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥
मां सरस्वती की आराधना करते वक्त इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए:
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च
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