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शीतला माता एक प्रसिद्ध हिंदू देवी हैं। प्रचलित मान्यता अनुसार शीतला मां (Goddess shitla) का स्वरूप अत्यंत शीतल है और रोगों को हरने वाला है। इनका वाहन गधा होता है और इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है। इनकी उपासना का मुख्य पर्व ‘शीतला अष्टमी’ (Shilta ashtami) है। कुछ लोग इसे सप्तमी के दिन मनाते हैं और कुछ प्रांतों में यह पर्व अष्टमी के दिन मनाया जाता है। दोनों ही दिन माता शीतला को समर्पित हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बसोड़ा पूजन किया जाता है। इस बार शीतला सप्तमी 3 अप्रैल और शीतला अष्टमी 4 अप्रैल मनाई जाएगी।
बसोड़ा की परंपराओं के अनुसार, इस दिन भोजन पकाने के लिए अग्नि नहीं जलाई जाती इसलिए अधिकतर महिलाएं शीतला अष्टमी के एक दिन पहले भोजन (Food) पका लेती हैं और बसोड़ा वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी बासी भोजन का सेवन करते हैं। माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बीमारियों से बचाती हैं। मान्यता है, शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां (Disease) नहीं होती और अगर हो भी जाए तो उससे जल्द छुटकारा मिलता है।
इस दिन महिलाएं ठंडे पानी से नहाती हैं और उसके बाद पूजा की सभी सामग्री के साथ रात में बनाए गए भोजन को लेकर पूजा (Worship) करती हैं। इस दिन व्रत किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। इसके बाद शीतलाष्टक को पढ़ा जाता है। शीतला माता की वंदना के बाद उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है। पूजा को विधि-विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद (Prasad) बसोड़ा को बांटा जाता है।
मां शीतला के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। इनकी उपासना ग्रीष्म में होती है, जब रोगों के संक्रमण (Infection) की सर्वाधिक संभावनाएं होती हैं। ऐसे में रोगों से बचने के लिए साफ-सफाई, शीतल जल और एंटीबायोटिक गुणों (Antibiotic properties) से युक्त नीम का प्रयोग करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन आखिरी बार आप बासी भोजन खा सकते हैं, इसके बाद से बासी भोजन का प्रयोग बिलकुल बंद कर देना चाहिए। वैज्ञानिक तौर पर देखें तो गर्मी बढ़ने के कारण बासी भोजन के खराब होने की आशंका बढ़ जाती हैं, अत: इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
अष्टमी आरंभ – 4 अप्रैल सुबह 4.12 बजे
अष्टमी समाप्त – 5 अप्रैल सुबह 2.59 बजे
पूजा का मुहूर्त – 06:08 से 6:41 बजे।
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