वास्तुकला के व्यवसाय को आवश्यक रूप से किसी भी औपचारिक
शिक्षा या डिग्री की आवश्यकता नहीं है। यह कई वर्तमान आर्किटेक्ट के लिए अजीब लग सकता है, लेकिन यह एक वास्तविकता है। दुनिया में कई
आर्किटेक्ट हैं जो खुद तैयार हुए (Self-Taught Architect) और इस बात को साबित किया कि वास्तुकला में कोई औपचारिक शिक्षा की जरूरत नहीं भी हो सकती है। इनमें से प्रमुख हैं फ्रैंक लॉयड राइट, लुइस सुलिवन, ले कोर्बुसियर, मीस वान डेर रोहे, बुचिमिनिस्टर फुलर, लुइस बैरागन और टाडा एंडो।
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ये कुछ ही के नाम हैं, जो वास्तुकला के पेशे पर हावी थे, लेकिन कई और भी हैं जो तुलनात्मक रूप से कम जानकार हैं या नहीं भी हैं। इन्हीं में से ऐसा ही एक नाम है दीदी कांट्रेक्टर (Didi Contractor) का जो भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला (Dharamsala in Himachal Pradesh, India) स्थित सेल्फ-सिखाया आर्किटेक्ट हैं। औपचारिक रूप से प्रशिक्षित आर्किटेक्टों के विपरीत, दीदी ने मिट्टी, बांस और पत्थर की वास्तुकला (Specialized in mud, bamboo and stone architecture) में विशेषज्ञता हासिल की है। वह पिछले लगभग तीन दशकों से वास्तविक अर्थों में स्थायी वास्तुकला में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं।
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पिता जर्मन और मां अमेरिकन थीं
दीदी के पास खुद वास्तुकला की डिग्री नहीं है, लेकिन अनेकों विश्वविद्यालय अपने छात्रों को काम सीखने के लिए उनके पास भेजते हैं। वह हिमाचल प्रदेश के
सिद्धबाड़ी (Sidhbari) नाम के गांव में एक मिट्टी के छोटे से मकान में रहती हैं। डेलिया नारायण दीदी एक जर्मन-अमेरिकी वास्तुकार (German-American Architect) है जो भारत में टिकाऊ निर्माण पर अपने काम के लिए जानी जाती हैं।
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महिलाओं की उपलब्धियों और योगदान को पहचानने के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार नारी शक्ति पुरस्कार की विजेता दीदी 91 वर्ष की उम्र में भी बराबर काम करती हैं। दीदी के पिता जर्मन और मां अमेरिकन थीं, इसलिए उन्हें जर्मन-अमेरिकी वास्तुकार कहकर भी पुकारा जाता है।
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मिट्टी-बांस-पत्थर से बनाती हैं घर
दीदी की शादी गुजराती कांट्रेक्टर (Gujarati Contractor) से हुई, दीदी ने हिमाचल में आकर अपने
मिट्टी के मकान का नक्शा खुद ही बनाया उसके बाद अनेकों लोगों ने अपने
घर का नक्शा दीदी से बनवाया। उसके बाद दीदी के मकान प्रसिद्ध होने लगे, धीरे-धीरे अनेकों विश्वविद्यालय (University) अपने छात्रों को काम सीखने के लिए उनके पास भेजने लगे। दीदी अपने मकान में सिर्फ स्थानीय सामान इस्तेमाल करती हैं उनके बनाए मकानों में मिट्टी-बांस-पत्थर स्थानीय मिलने वाली लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है।
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अगर उनके पास कोई बड़ा मकान बनवाने के लिए नक्शा बनाने के लिए कहे तो वह परिवार के सदस्यों के बारे में पूछेंगी और फिर जरूरतों के हिसाब से नक्शा बना कर देंगी। दीदी गांधीवादी हैं सरल एवं सहज हैं, उनके घर में सारे कपड़े खादी के हैं उनका रहन-सहन बिल्कुल सादा है। दीदी का जन्म वर्ष 1929 में यूनाइटेड स्टेट्स में हुआ,वह वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से सटे छोटे से गांव सिद्धबाड़ी में रहती हैं।
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