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Himachal के इस जिला में एक ऐसा मंदिर जो साल के आठ माह रहता है अदृश्य
Last Updated on August 30, 2020 by Deepak
रविन्द्र चौधरी /जवाली। हिम के आंचल में बसा हिमाचल कई रहस्यों से भरा पड़ा है। यहां प्रसिद्ध शक्तिपीठों के अलावा कई ऐसे छोटे मंदिर (Temple) है जो अपने आप में अदभुत हैं और अपने आप में कई रहस्यों को छिपाएं हुए हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा (Kangra) में स्थित है। इन मंदिरों की कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है। इन मंदिरों की श्रृंखला का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। यह मंदिर साल के आठ महीने पानी में डूबे रहते हैं। ऐसा यहां स्थित पौंग बांध (Pong Dam) के कारण होता है, जिसका पानी चढ़ता-उतरता रहता है।
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ब्यास नदी पर बने पौंग बांध की महाराणा प्रताप सागर झील में पठानकोट से 40, धर्मशाला से 70 किमी दूर मेन पौंग की दीवार से 15 किमी दूरी पर ऐतिहासिक स्थल बाथू की लड़ी में इन मंदिरों का निर्माण किया गया था। जो इस समय झील के बीचोंबीच स्थित है। प्राचीन कथाओं के अनुसार पांडवों ने इस पवित्र स्थल का निर्माण करने के उद्देश्य से अपने प्रिय सखा भगवान कृष्ण जी को स्मरण करके एक रात्रि को छह माह के बराबर बना दिया था, ताकि एक ही रात्रि में बाथू की लड़ी (bathu ki ladi) का निर्माण किया जा सके, क्योंकि दिन में अज्ञातवास होने की वजह से पांडव छिपे रहते थे।
मंदिर में मौजूद हैं महाभारत काल की वस्तुएं
यह मंदिर साल में करीब आठ माह पौंग झील का स्तर बढ़ने के कारण पानी में डूबा रहता है और मात्र चाह माह तक ही पानी से बाहर रहता है। महाभारत काल (Mahabharata period) में पांडवों द्वारा बनाए गए इन मंदिरो का क्षेत्र राजा गुलेर के अधीन था। उन्होंने इसके रखरखाव की जिम्मेदारी गृहस्थ जीवन से परे की जिदगी जीने वाले वैरागी साधुओं को दे दी थी जो बाद में इन्हीं की गद्दी के रूप में यह मंदिर प्रचलित रहा। इस मंदिर में आज भी पुरानी महाभारत काल की वस्तुएं मौजूद हैं। इस मंदिर के दर्शन के लिए लोग गाडी व बोट दोनों तरीकों से जाते हैं।
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कई फिल्मी एल्बमों की हो चुकी है शूटिंग
गर्मियों में पूर्ण रूप से पानी के बाहर रहने से इस मंदिर के पूर्णतया दर्शन करके सौभाग्यशाली बना जा सकता है। इस मंदिर के चारों ओर पौंग झील के पानी की मौजूदगी से यह स्थान अति मनमोहक लगता है। इसी के फलस्वरूप इस स्थान पर कई फिल्मी एल्बमों की शूटिंग (Shooting of albums) हो चुकी है। इस बाथू की लड़ी को जाने वाला रास्ता भी काफी दयनीय है। करीब 8 माह तक पानी में समाए रहने के कारण इस मंदिर की नक्काशी भी उखड़नी शुरू हो गई है। इसके साथ निर्मित छोटे-छोटे मंदिर गिरने शुरू हो गए हैं। बाथू की लड़ी को अगर पुरातत्व विभाग (Archeology department) ध्यान दे, तो इसको पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा सकता है। पर अब यह धरोहर हरसाल पानी के नीचे रहने से खंडहर बनती जा रही है और धीरे धीरे अपने वजूद को खोने लगी है।
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बोट या गाड़ी के माध्यम से जा सकते हैं मंदिर तक
इस समय भी लोग यहां गाडी या बोट के माध्यम से जाते हैं क्योंकि इन दिनों यह स्थान पूरी तरह से पानी के बाहर है इस स्थान को निहारते हैं और यहां की निर्माण कला को देख कर आश्चर्य चकित होते हैं। अब 20 अगस्त के बाद जब मानसून की बारिश शुरू होगी तो बांध में जलभराव होना शुरू होगा और फिर 20 सितंबर तक यह ऐतिहासिक मंदिर के शीर्ष से भी ऊपर 50 फीट तक पानी आ जाता है।
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