-
Advertisement
राजस्थान व पंजाब की सरकारें Himachal के हिस्से पर कर रहीं यूं मौज
Last Updated on August 14, 2020 by
रविन्द्र चौधरी/फतेहपुर। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के शिवालिक पहाड़ियों के आर्द्र भूमि पर ब्यास नदी पर बांध बनाकर एक जलाशय का निर्माण किया गया है जिसे महाराणा प्रताप सागर (Maharana Pratap Sagar) नाम दिया गया है। इसे पौंग जलाशय या पौंग बांध (Pong Dam) के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव निर्मित बांध वर्ष 1975 में बनाया गया थाए इससे 41 किलोमीटर लंबी और अधिकतम 19 किलोमीटर चौड़ी झील के लिए भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड ने 28000 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया। इस पजलाशय का कुल जलागम क्षेत्र 12,650 वर्ग किलोमीटर है। पौंग बांध क्षेत्र को 1983 में वन्य प्राणी अभयारण्य घोषित किया गया। इसके प्रबन्धन की योजना दिसंबर 1984 में पास हुई।
ये भी पढ़ें – पौंग झील में 60 हजार विदेशी मेहमानों का डेरा, विभाग अलर्ट, लगाए सीसीटीवी
वर्ष 1994 में इसे राष्ट्रीय महत्त्व का वेटलैंड और रामसर स्थल घोषित किया गया। इसका 307 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अभयारण्य है और अभयारण्य के चारों ओर 440 मीटर समुद्र तल से ऊंचाई तक का क्षेत्र बफर ज़ोन घोषित किया गया है। दो लाख से भी ज्यादा स्थानीय और प्रवासी पक्षी यहां बसेरा करते हैं। यहां 220 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं। 27 प्रजाति की मछलियां इस जलाशय में पाई जाती हैं। ये मछलियां पक्षियों को भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए आजीविका का मुख्य साधन भी हैं।
पुनर्वास का काम दीर्घकालीन जनहित को ध्यान में रखे बिना किया गया। पुनर्वास के लिए भूमि आवंटन कार्य आज तक लंबित पड़ा है। 16 हज़ार परिवारों की भूमि औने-पौने दामों में छीनकर उन्हें सतत आय की व्यवस्था में कोई योगदान ना किया गया और आज भी पौंग विस्थापित अपने हक के लिए कभी नेता तो कभी प्रशासन तो कभी कोर्ट में न्याय पाने के लिए धक्के खाते हैं। आज तक अपने हक पाने की आस में कई पौंग विस्थापित इस दुनिया को अलविदा कह गए व उनके परिवार न्याय की आस में हैं। विस्थापितों को जमीन तो कहां पर पौंग बांध के पानी पर भी हक नहीं मिल पाया है, जबकि राजयस्थान व पंजाब की सरकारें बांध के पानी पर मौज कर रही हैं।
भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड से हिमाचल को राज्य पुनर्गठन के समय निर्धारित 7.19% हिस्सा इस परियोजना से पैदा की जा रही बिजली में से मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के हक़ में यह फैसला हो जाने के बावजूद पिछला बकाया और वार्षिक हिस्सा हिमाचल प्रदेश को नहीं मिल पा रहा है। इसमें केन्द्र सरकार के दखल से हिमाचल का हिस्सा प्राप्त करने के प्रयास हालांकि चल रहे हैं।