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गुरु पर्व-2020 विशेष: गुरुनानक देव से जुड़े इन प्रसिद्ध गुरुद्वारों के बारे में जानते हैं आप
Last Updated on November 30, 2020 by saroj patrwal
सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव की आज जयंती मनाई जा रही है। गुरु पर्व सिखों का पवित्र त्योहार है। गुरुनानक देव ने ही सिख धर्म की नींव रखी। उनका जन्म 1469 में कार्तिक मास की पूर्णिमा को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। गुरुनानक देव जी बचपन से ही सांसारिक बातों से दूर चिंतन में लगे रहते थे। उनकी स्कूली शिक्षा बहुत कम आयु में ही छूट गई थी। वे अपने विद्यालय में भी सत्संग के प्रश्न पूछा करते थे। जिसका उत्तर उनके अध्यापक भी नहीं दे पाते थे। अंत में हारकर उनके शिक्षक उन्हें घर छोड़ गए थे। जिसके बाद नानक जी का ज्यादातर समय चिंतन औऱ सत्संग में ही बीतता था। तीस वर्ष की आयु तक नानक का ज्ञान परिपक्व हो चुका था। नानक जी जगह-जगह जाकर लोगों के उपदेश देते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। उनके जीवन के कई ऐसे किस्से हैं जिनसे जीवन की बड़ी सीख मिलती हैं। इसी कड़ी में आज बात करते हैं गुरु नानक के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण गुरुद्वारों के बारे में
गुरुद्वारा गुरुबाग साहबः इस गुरुद्वारे को लेकर गुरु नानक साहब के अनुयाइ कहते हैं कि इस गुरुद्वारे में गुरुनानक साहब रहते थे। ये गुरुद्वारा कपूरथला में स्थित है। इस गुरुद्वारे को बाद में उनके घर के रुप में बदल दिया गया। ये भी बताया जाता है कि गुरु नानक साहब के दो बेटों बाबा श्रारामचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म इसी घर में हुआ था।
गुरुद्वारा बेर साहिबः पंजाब के कपूरथला में ही में स्थित गुरुद्वारा बेर सिखों का एक पवित्र धार्मिक स्थल है। गुरु नानक जी ने अपने जीवन के 14 वर्ष यहां बिताए थे। इस गुरु द्वारे का नाम यहां पर लगे बेर के पेड़ के आधार पर रखा गया है। गुरुद्वारे को लेकर मान्यता है कि एक बार गुरु नानक साहब यहीं पर अपने गुरु मर्दाना साहब के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे और स्नान के लिए डुबकी लगाते समय एक अलौकिक प्रकाश हुआ, जिसके बाद वह तीन दिन के लिए इसी प्रकाश में आलोप हो गए। इस दौरान उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
गुरुद्वारा हट साहबः कपूरथला में स्थित इस गुरुद्वारे को लेकर बड़ी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यहीं पर गुरु नानक जी को तेरा शब्द के जरिए अपनी मंजिल का आभास हुआ था। यहां पर उन्होंने सुल्तानपुर के नवाब के यहां पर नौकरी की थी। यह नौकरी उनके बहनोई जयराम की मदद से मिली थी। इस गुरुद्वारे को लेकर उनके श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई हैं।
गुरुद्वारा कोठी साहबः बताया जाता है कि यह गुरु द्वारा पहले जेल हुआ करती थी। जहां पर गुरु नानाक देव जी को नवाब दौलत खान द्वारा खाते में हेरा फेरी के चलते बंद रखा गया था। हालांकि बाद में दौलतखान ने अपनी गलती का एहसास होने के बाद उन्होंने गुरुनानक साहब से माफी मांगी थी। साथ ही नवाब ने उन्हें सुल्तानपुर का प्रधान घोषित करने को कहा। लेकिन नानक साहब ने इससे इंकार कर दिया था।
गुरुद्वारा कंध साहबः पंजाब के गुरदासपुर में स्थित गुरुद्वारा कंध साहब को लेकर भी कई मान्यताएं हैं। बताया जाता है कि यहां पर गुरुनानक साहब का विवाह उनकी पत्नी सुलक्षणा के साथ हुआ था। हर ज्येष्ठ माह की 24 तारीख को यहा पर उनके वैवाहिक वर्षगांठ को बड़े धूम धाम मनाया जाता है।
गुरुद्वारा अचल साहिबः जानकारी है कि सिख धर्म का प्रचार प्रसार और सामाजिक एकता को लेकर यात्रा के दौरान गुरुनानक साहब यहां पर रुके थे। तभी से इसे गुरुद्वारा अचल साहिब के नाम जाना जाता है। यह गुरदासपुर में स्थित है। यहीं पर नाथपंथियों के गुरु भांगर नाथ के साथ गुरुनानक जी का धर्म को लेकर वाद-विवाद हुआ था। नानक जी ने उन्हें बताया था कि ईश्वर को प्राप्त करने मार्ग केवल प्रेम है।
गुरुद्वारा करतारपुर साहिबः पाकिस्तान के नोरवाल जिले में स्थित इस गुरुद्वारे का इतिहास करीब 500 साल पुराना है। 1522 में गुरु नानक साहब ने इसकी स्थापना की थी। उन्होंने अपने जीवन के आखिरी साल यहीं बिताए थे। गुरु नानक साहब यहां पर पंचतत्व में विलीन हो गए थे।
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानकः इस गुरुद्वारे में नानक जी धार्मिक यात्रा के दौरान करीब 12 साल तक रहे थे। रावी नदी के किनारे बने बसे गुरदासपुर के इस गुरुद्वारे में आप उनके वस्त्रों के कई चीजों को देख सकता हैं। इस गुरुद्वारे में उनके द्वारा मक्का से लाए गए वस्त्र भी रखे गए हैं।