-
Advertisement
आखिर क्यों होती है तुलसी के पौधे की पूजा, जानें
सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में कई देवी देवताओं को माना जाता है और उनकी पूजा अर्चना भी की जाती है लेकिन देवताओं के साथ साथ कई पौधों को भी पूजा जाता है। तुलसी का पौधा (Tulsi plant) औषधि से ही भरपूर नहीं बल्कि इसकी पूजा भी की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कई कथाओं में तुलसी का वर्णन भी है। तुलसी के पौधे को पवित्र माना जाता है। लोग तुलसी की पूजा तो करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसी की पूजा होती क्यों हैं अगर नहीं तो आइए जानते हैं।
तुलसी का पौधा पूजनीय
हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा पूजनीय है इसकी पूजा (Worship) हम भगवान विष्णु से जुड़े होने की वजह से करते हैं । ऐसा माना जाता है कि जब हम श्री हरि जी को भोग लगाते है तो उस भोग में तुलसी के पत्ते होने चाहिए नहीं तो भगवान भोग को स्वीकार नहीं करते। तुलसी की पूजा की कहानी हिंदू धर्म (Hindu Religion) में बेहद दिलचस्प है। कहानी के मुताबिक, जालंधर नाम का एक असुर था तो बेहद शक्तिशाली था। जालंधर को उसकी पत्नी वृंदा का संरक्षण भी प्राप्त था और वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थी।
वृंदा का भगवान विष्णु को श्राप
सभी देवी देवता जालंधर के अत्याचारों से परेशान थे और उसका अंत करना चाहते थे किंतु वृंदा के कारण वह जालंधर को नहीं का अंत नहीं कर पा रहे थे। क्योंकि वृंदा की आध्यात्मिक शक्तियां जालंधर की रक्षा कर रही थीं। उसे मारने के लिए उसकी पवित्रता भंग करना आवश्यक था। इसलिए, भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) जालंधर के रूप में वृंदा के पास पहुंचे, वृंदा भगवान को न पहचान सकी और देवता जालंधर को मारने में समर्थ हो गए। जालंधर का वध होने के बाद भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप में आए और वृंदा को एहसास हुआ कि उनके पति के रूप में स्वयं भगवान विष्णु थे। उसे जब यह पता चला कि उसके पति का वध हो चुका है तो क्रोध में आकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह पत्थर के बन जाएंगे। भगवान ने वृंदा के श्राप को स्वीकार कर लिया और उसे उसके पति के पिछले जीवन की वास्तविक कहानी बताई और बताया कि उसे क्यों मारना पड़ा। बाद में वृंदा को अपने इस कार्य पर पश्चाताप हुआ और उनसे क्षमा मांगी। लेकिन चूंकि वह अपने पति के बिना नहीं रह सकती थीं, इसलिए वृंदा ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया।
यह भी पढ़े:एक बार रुद्राक्ष धारण करके तो देखिए पूरी होगी सभी मनोकामनाएं
शालिग्राम से तुलसी का विवाह, क्यों
भगवान वृंदा की भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि उसकी राख से तुलसी का पौधा पैदा होगा और पौधे का विवाह (Marriage) शालिग्राम से होगा, जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। उसने उससे यह भी कहा कि उनका प्रसाद तुलसी के पत्तों के बिना स्वीकार नहीं होगा। इसलिए हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे की पूजा होती है तुलसी के पौधे का शालिग्राम के साथ विवाह होता है। प्राचीन शास्त्रों में, तुलसी को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का प्रवेश द्वार माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी की निचली शाखाओं में और इसके तने में अन्य सभी देवी-देवताओं और सभी हिंदू तीर्थों का वास होता है। तुलसी के पौधे के हर एक हिस्से को पूजनीय बताया गया है और इसलिए शास्त्रों में इसकी पूजा का विधान बताया गया है।