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जानवरों के पास भूकंप को महसूस करने के लिए होती सिक्स्थ सेंस
यूं तो भूकंप आने का आज तक पता नहीं चल पाया कि यह कैसे आता है। मगर ऐसा माना जाता है कि कुछ पशुओं (Animal) के पास खास सूंघने की शक्ति होती है, जिससे वे भूकंप आने का पता लगा सकते हैं। इसके बारे में एक शोध हुआ है, जिसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। ग्रेटर नोएडा में रहने वाले एक परिवार के लोग अपने पालतू जानवरों की बेचैनी और शोर से ही आधी रात 2 बजे उठ गए।उन्हें जानवरों को शांत करने और खुद भूकंप के समय सावधानी बरतने में अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी। इस संबंध में वेटनरी डॉक्टर रीटा गोयल (Dr Rita Goyal) का मानना है कि जिसे हम सिक्स्थ सेंस (sixth sense) मानते हैं वह असल में जानवरों की स्वाभाविक खूबी होती है। उनकी सुनने की क्षमता और महसूस करने की क्षमता इंसानों के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती है इसीलिए वह आवाजों और उससे होने वाले कंपन को बहुत पहले पकड़ लेते हैंण् इसी के साथ जानवर आमतौर पर जमीन से जुड़ा होता हैण् उसकी त्वचा धरती के संपर्क में होती है और उसकी सजा भी कंपन को बेहतर तरीके से दर्ज करती है।
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इसीलिए जानवरों में तेज आवाज पर भूकंप पर या फिर तेज हवाएं चलने पर बेचैनी बढ़ जाती है। वहीं इस संबंध में कुछ वर्ष पहले इटली के उत्तरी हिस्से में एक शोध किया गया। उत्तरी इटली के उस हिस्से में जो भूकंप के लिहाज से संवेदनशील था वहां गाय भेड़ और कुत्तों में सेंसर लगाए गए उन सेंसर्स के रिजल्ट से ये पता चला कि यह जानवर भूकंप आने के कई घंटों पहले ही विचलित होने लगते हैं और तेज.तेज चलना और आवाज भी करना शुरू कर देते हैं। रिसर्च के लिए उत्तरी इटली के एक ऐसे हिस्से में जानवरों पर यह शोध किया जो भूकंप (earthquake) प्रभावित क्षेत्र माना जाता था उन्होंने छह गाइए पांच भेड़ और दो कुत्तों में एक्सीलरोमीटर लगाया कई महीनों तक उनकी एक्टिविटी पर नजर रखी गई रिसर्च के इन महीनों के दौरान तकरीबन 18000 भूकंप आए लेकिन उनमें से 12 भूकंप ऐसे थे जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4 या उससे ज्यादा दर्ज की गई।
इस शोध में सामने आया है कि कई बार बार जानवर भूकंप से 20 घंटे पहले से ही विचलित होने लगते हैं। इन जानवरों ने 28 किलोमीटर के दायरे तक में आने वाले भूकंप पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी थी। शोध ने वालों का मानना था कि जानवर भूकंप के दौरान चट्टानों के हिलने से होने वाली आयोडाइजेशन को अपने फर के जरिए पकड़ लेते हैं। हालांकि किस गतिविधि का क्या मतलब निकाला जाए और कितने घंटे पहले उसे वार्निंग माना जाए इसके लिए बड़े पैमाने पर रिसर्च करने की जरूरत है।