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मिशन 2022: यूपी विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए बीजेपी की ये है रणनीति
लखनऊ। दिल्ली का रास्ता यूपी होकर गुजरता है। और फिलवक्त दिल्ली और यूपी दोनों जगहों पर बीजेपी काबिज है। 2022 में यूपी में विधानसभा चुनाव हैं। इसके ठीक दो साल बाद यानी 2024 में लोकसभा चुनाव। इसके मद्देनजर यूपी में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जिस कारण बीजेपी एक बार फिर छोटे दलों को अपने साथ लाने की कवायद शुरू कर दी है। वहीं,ओपी राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के ने पिछले महीने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा की थी, इसलिए बीजेपी ने अब अपना ध्यान राज्य के छोटे-छोटे दलों पर केंद्रित कर दिया है।
गौरतलब है कि ये सभी छोटी-छोटी पार्टियां अपने-अपने समुदायों को एक बड़ी आवाज प्रदान करती हैं। इनमें बिंद, गडरिया, कुम्हार, धीवर, कश्यप और राजभर सहित विभिन्न ओबीसी समूह शामिल है। वहीं, बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल हुए नेताओं का कहना है कि उन्हें इस चुनाव में गठबंधन धर्म के तहत कम से कम 15 सीटें मिलने की उम्मीद है। नेताओं ने बीजेपी की रणनीति का राज खोलते हुए कहा कि बीजेपी यूपी इलेक्शन से ठीक पहले गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। वहीं, उन्होंने कहा कि बीजेपी के इस फैसले के चलते उन्होंने सत्ताधारी पार्टी से गठजोड़ किया।
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कौन कौन से हैं ये सात दल
ये सातों दल हैं- भारतीय मानव समाज पार्टी, शोषित समाज पार्टी, भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, भारतीय समता समाज पार्टी, मानवहित पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और मुसहर आंदोलन मंच उर्फ गरीब पार्टी.
1. भारतीय मानव समाज पार्टी
प्रमुख: केवट रामधनी बिंदी
स्थापना वर्ष: 2017
इस पार्टी का का ध्यान मुख्य रूप से बिंद, जो आम तौर पर निषादों के रूप में गिने जाने वाला ओबीसी समूह है, पर केन्दित है। पूर्वी यूपी में बिंद समूह की आबादी लगभग 6 फीसदी है, खासकर प्रयागराज, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र और गाजीपुर सहित 10 जिलों में ये एकमुश्त वोट करते हैं। जिस कारण जीत और हार का समीकरण महज कुछ अंतर का रहता है। बता दें कि बिंद पहले यूपी में बसपा और सपा के कोर वोटर में गिने जाते थे। लेकिन बीते कुछ बरस से यूपी में जातिगत समीकरण बदले हैं।
2. शोषित समाज पार्टी
प्रमुख: बाबू लाल राजभर
स्थापन वर्ष : 2020
पूर्वी यूपी में राजभरों की आबादी कुल आबादी के 14 फीसदी से 22 फीसदी के बीच है। हालांकि, राजभर समुदाय के प्रतिनिधित्व का दावा भारतीय सुलहदेव समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर करते हैं। लेकिन उनके ऊपबर शोषित समाज पार्टी के प्रमुख ने पारिवारवाद का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राजभरों ने देखा है कि कैसे ओपी राजभर सिर्फ अपने परिवार के लिए काम करते हैं, समुदाय के लिए नहीं। इसलिए इस बार सारा समुदाय मेरी पार्टी का समर्थन कर रहा है।
3.भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी
प्रमुख: भीम राजभर
स्थापना वर्ष : 2020
यह पार्टी बलिया जिले के आस-पास के राजभर समुदाय पर केंद्रित है। भीम राजभर पहले ओपी राजभर की एसबीएसपी के सदस्य भी थे। वह हिस्सेदारी मोर्चा के एक सह-संस्थापक सदस्य हैं।
4.भारतीय समता समाज पार्टी
प्रमुख: महेंद्र प्रजापति
स्थापना वर्ष: 2008
इस पार्टी का सारा ध्यान मुख्य रूप से अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के तहत आने वाला प्रजापति समुदाय पर है, और पार्टी का उद्देश्य इस समुदाय के सदस्यों की वित्तीय स्थिरता के लिए काम करना है। राज्य की कुल आबादी में इस समुदाय की आबादी 5 फीसदी से ज्यादा है। बता दें कि कुम्हार जाति के अधिकांश लोग परंपरागत रूप से सपा के समर्थकों में से माने जाते हैं। इसलिए बीजेपी ने खेल बिगाड़ने के उद्देश्य से बीजेपी महेंद्र प्रजापति को अपने खेमे में लेकर आई है। वहीं, सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा ‘माटी कला बोर्ड’ का गठन, यही राजनीतिक संकेत देता है।
5. मानवहित पार्टी
प्रमुख: कृष्ण गोपाल सिंह कश्यप
स्थापना वर्ष : 2015
पार्टी कश्यप समुदाय, निषादों के तहत आने वाली एक और उप-जाति, का प्रतिनिधित्व करती है। बताया जाता है कि कश्यप लोग 1998 से 2014 के बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ थे। अब कृष्ण गोपाल सिंह बीजेपी के खेमे में आ गए हैं। यूपी में कश्यप आबादी तीन फीसदी से अधिक है।
6. पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी
प्रमुख: चंदन सिंह चौहान
स्थापना वर्ष : 2018
इस पार्टी के प्राथमिकता वाले समूहों में शामिल हैं नोनिया, एक ओबीसी जाति जो मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में पाई जाती है. पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि वाराणसी, चंदौली और मिर्जापुर सहित पूर्वी यूपी के जिलों में नोनिया तबके की आबादी 3 प्रतिशत से अधिक है. इस पार्टी का मुख्य आधार वाराणसी में है।
7. मुसहर आंदोलन मंच (गरीब पार्टी)
प्रमुख: चंद्रमा वनवासी
स्थापना वर्ष : 2018
वहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए इस गठजोड़ को लेकर बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि इन सभी पार्टियों का अपने अपने जिले व प्रभुत्व क्षेत्र में महत्व है। इनके गठबंधन से बीजेपी को मजबूती मिलेगी। दरअसल , ओपी राजभर के सपा के साथ गठजोड़ के बाद पूर्वांचल के 50 से अधिक सीटों पर बीजेपी को खेल बिगड़ने का डर है। इस कारण बीजेपी सभी को अपने साथ लगाई। वहीं, इस बारे में बीजेपी नेता कहते हैं कि 2014 में जब ओपी राजभर, संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल ने हमारे साथ गठबंधन किया था तो उससे पहले उनकी पार्टियों के बारे में कोई भी नहीं जानता था। उनका मूल्य और महत्त्व सिर्फ इसलिए बढ़ गया क्योंकि उन्होंने हमारे साथ गठबंधन किया था।
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