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चिंतनीय : Kullu में किताबों से दूर भीख मांग रहा बचपन, पेंसिल की जगह हाथ में कटोरा
Last Updated on August 30, 2020 by
कुल्लू। भुंतर में ब्यास-पार्वती नदी के संगम स्थल के किनारे झोपड़ियों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों का बचपन भीख मांगने में निकल रहा है। भुंतर बाजार में प्रवासियों के दर्जनों बच्चे लोगों को भीख मांगते हुए तंग करते रहते हैं। प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) के एक परिवार में आधा दर्जन से बच्चे हैं और ये सब मिलकर भीख मांगने की प्रवृति को जन्म दे रहे हैं। शनिवार के दिन दर्जनों के झुंड में इकट्ठा होकर ये बच्चे बाजार में लोगों व दुकानदारों को शनि दान के देने के लिए तंग करते हैं। ऐसे ही झोपड़ियों में रहने वाले दर्जनों लोग कुल्लू, भुंतर व मनाली में घूमकर शनि दान के नाम पर लोगों से पैसे मांगते हैं।
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भुंतर में सैकड़ों प्रवासी मजदूर दर्जनों बच्चे पैदा कर रहे हैं जिससे एक तरफ जहां जनसंख्या में वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी तरफ इन बच्चों का बचपन भीख मांगने में बीत रहा है। इन प्रवासी मजदूरों को केंद्र सरकार (Central government) की गरीबी उन्मूलन योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में यह प्रवासी मजदूर कूड़ा प्लास्टिक लोहा इकट्ठा कर दयनीय जीवन जीने को मजबूर हैं। शहर के लोगों ने सरकार व प्रशासन से मांग की है कि इन बच्चों को भीख मांगने की प्रवृति से बाहर निकालने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं और इन प्रवासी मजदूरों व बच्चों के लिए सरकार कोई योजना बनाकर सुविधा दे।
भुंतर (Bhuntar) के स्थानीय दुकानदार इंदीबर मेहता, सुशील, सोनू, कुमार, संदीप कुमार, मेघ सिंह ने बताया कि पिछले कई साल से भुंतर में नए पुल के नीचे झोंपड़ियों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों के दर्जनों बच्चे भुंतर शहर में भीख मांग कर लोगों व दुकानदारों को तंग कर रहे हैं। कई बार यह बच्चे पैर तक पकड़ने लग जाते हैं जिससे लोग परेशान हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सैकड़ों प्रवासी मजदूरों के 6 से अधिक बच्चे हैं ऐसे में जहां एक तरफ ये गरीबी में जी रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बच्चे पैदाकर उनसे भीख मांगने (Begging) के लिए शहर में भेजते हैं। इन प्रवासी मजदूरों ने इसे धंधा बना लिया है और बच्चों को भीख मंगवाकर पैसे इकट्ठे कर घर का खर्चा चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की कई योजनाएं गरीबों के लिए बनी हैं ऐसे में सरकार प्रशासन को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए। भुंतर शहर में भीख मांग रहे ऐसे में बच्चों के हाथ में जहां कलम किताब होनी चाहिए थी वहां कटोरा है। बच्चों को इस प्रवृति से बाहर लाने के लिए प्रशासन को ठोस कदम योजना बनाने की जरूरत है।