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क्लाइमेट चेंज आर्कटिक महासागर को कर रहा इफेक्ट, लगातार कम हो रही बर्फ
ग्लेशियरों की बर्फ (Glaciers of Ice) लगातार पिघल रही है। यह सब वातावरण में परिवर्तन से हो रहा है। यही नहीं बर्फ के पहाड़ों (Snow Mountains) के पहाड़ इस कारण अब खत्म होते जा रहे हैं। जिन समुद्रों (Ocean) पर काफी सारी बर्फ थी, वह अब कम हो गई है। गर्मी का सीधा प्रभाव आर्कटिक महासागरों (Arctic Ocean) तक पहुंच रहा है। अब धरती पर वातावरण परिवर्तन का असर सीधा दिखाने देने लगा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं जो खतरे का इशारा हैं। अब भविष्य में मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। इस संबंध में अर्काटिक महासागर में बर्फ पिघलने की एक रिपोर्ट सामने आई है। इसमें बताया है किस तरह पहले से बर्फ घटती जा रही है। एक बड़े एरिया में महासागर का आईस कवर (Ice Cover) भी खत्म होता जा रहा है।
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इसके कारण धरती पर पड़ने वाली प्रचंड गर्मी का सीधा प्रभाव आर्कटिक महासागर तक दिख रहा है। वर्ष 2022 में यहां सबसे कम बर्फ देखी गई है। यह न्यूनतम मार्क से भी कम हो गई है। यहां का आईस कवर न्यूनतम औसत 6.22 मिलियन स्क्वेयर किलोमीटर रहा था। मगर अब यहां न्यूनतम एवरेज (Minimum Average) से काफी कम मात्रा में आईस कवर रह गया है। यह आईस कवर अब सिर्फ 4.67 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर (4.67 Million Square Kilometers) रह गया हैए जो 1981.2010 के मिनिमम आंकड़े से 1,55 मिलियन थे।
वहीं नासा से मिली जानकारी के अनुसार कुछ क्षेत्र आईस कवर के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें बर्फ की सघनता कम से कम 15 फीसदी है। ज्ञात रहे कि नास इस बर्फ निरंतर ट्रैक करते सेटेलाइट के माध्यम से इसका ध्यान रखता है। वहीं अब क्लियर हो गया है कि आर्कटिक महासागर और उसके इर्द-गिर्द गर्मियों (Summer) में बर्फ की मात्रा काफी घट चुकी है। इसमें पता चला है कि करीब 16 सालों में 10 बार यह निचले स्तर से कम रहा है। यह साल 1980 के पश्चात से सबसे कम समुद्री बर्फ आवरण रहा है। इस संबंध में शनल स्नो एंड आईस डेटा सेंटर के समुद्री बर्फ शोधकर्ता वॉल्ट मायर का कहना है कि यह केवल मात्र संयोग नहीं है अपितु गर्मी के कारण ऐसा हो रहा है। यह मूलभूत चेंज के बारे में बता रहा है। हर साल आर्कटिक समुद्री बर्फ गर्म वसंत और गर्मियों के महीनों में पिघलती है और आमतौर पर सितंबर में अपनी न्यूनतम सीमा तक पहुंच जाती है।
मगर संभावन जताई जा रही है कि जैसे-जैसे मौसम ठंडा होगा फिर से बर्फ बढ़ने लगेगी और मार्च (March) के आसपास अपनी अधिकतम सीमा तक भी पहुंच जाएगी। यह उबलते पानी के बर्तन पर एक ढक्कन के रुप में काम करता हैए जिसे हटाने पर गर्मी और भाप हवा में निकल जाती हैण् इस क्षेत्र में समुद्र से अधिक गर्मी और नमी वातावरण में जा रही हैए जिससे वार्मिंग में उछाल आ रहा है, इसके साथ ही आर्कटिक बर्फ का आकाश में बादलों पर भी काफी प्रभाव पड़ता हैए जो यह अनुमान लगाने में मदद करता है कि भविष्य में आर्कटिक कितना और कितनी तेजी से गर्म होता रहेगा।
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