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हिमाचल विधानसभा चुनाव: पच्छाद कांग्रेस में बगावत, गंगूराम मुसाफिर आजाद लड़ेंगे चुनाव
राजगढ़। पच्छाद विधानसभा क्षेत्र (Pachhad Assembly Constituency) से 7 बार विधायक रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता गंगूराम मुसाफिर (Congress leaders Ganguram Musafir ) इस बार पार्टी का टिकट ना मिलने से खफा होकर निर्दलीय ही चुनाव (Contest Independent Elections) लड़ेंगे। दरअसल शनिवार को राजगढ़ में गंगूराम मुसाफिर के सैकड़ों कार्यकर्ता राजगढ़ मैदान में एकत्रित हुए। करीब 3 घंटे तक चली बैठक में सभी कार्यकर्ताओं ने गंगूराम मुसाफिर को निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया। इस बैठक में गंगूराम मुसाफिर ने कार्यकर्ताओं का आग्रह स्वीकार करते हुए 40 वर्षों के बाद एक बार फिर 25 अक्टूबर को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन (Nomination) करने के लिए हामी भर दी है। साथ ही करीब एक हजार पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने सामूहिक इस्तीफे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को भेज दिए है। पूर्व कांग्रेस मंडल अध्यक्ष ठाकुर देवेंद्र सिंह शास्त्री ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि केवल एक व्यक्ति द्वारा कांग्रेस (Congress) की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष को गलत तथ्य देकर गंगूराम मुसाफिर के खिलाफ भड़काया।
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बता दें कि 1982 में गंगूराम मुसाफिर ने वन विभाग की नौकरी से इस्तीफा देकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। उस समय कांग्रेस सरकार के पास बहुमत नहीं था। तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) ने गंगूराम मुसाफिर को कांग्रेस में एसोसिएट विधायक के तौर पर शामिल किया। लिहाजा उन्हें राज्य वन मंत्री का पद भी दिया। इसके बाद 1985 से लेकर 2019 तक गंगूराम मुसाफिर कांग्रेस के टिकट पर लड़ते रहे। इस बार 2022 विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी छोड़कर पहली अप्रैल 2020 को कांग्रेस में शामिल हुई दयाल प्यारी को कांग्रेस हाईकमान ने टिकट दी। दयाल प्यारी का पच्छाद कांग्रेस मंडल ने शुरू से ही विरोध किया।
मंडल के सदस्यों ने शिमला जाकर राजीव भवन में भी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर (Kuldeep Rathore) के समक्ष दयाल प्यारी को कांग्रेस में मिलाने के विरोध में प्रदर्शन कुलदीप राठौर किया था। इसके बाद हिमाचल कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला ने पच्छाद कांग्रेस मंडल की कार्यकारिणी को ही भंग कर दिया था। कांग्रेस हाई कमान ने 17 अक्टूबर को जब 46 प्रत्याशियों की घोषणा की, तो जीआर मुसाफिर की टिकट काटकर दयाल प्यारी को दे दिया गया। इसके बाद से गंगूराम मुसाफिर के समर्थकों में भारी रोष पनपा हुआ था।