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रक्षाबंधन के दिन क्रमिक अनशन पर बैठे मृत कर्मियों के आश्रित
शिमला। लोकतंत्र (Democracy) में अनशन और आंदोलन वो आवाज है। जो सोई हुई सरकारी कानों के पर्दों को खोल देते हैं। लेकिन अब ये सारी बातें दीगर हो चली हैं। यहां न तो अब लोकतंत्र की इस आवाज को सुनने वाला कोई है, ना ही राखी (Rakhi) के दिन मिठाई खिलाने वाला। सरकार भी राजधानी में जनता की इस आवाज से अंजान बनी हुई है। जिसे ना तो आश्रितों की आवाज सुनाई देती है और ना ही उनका शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन दिखाई देता है। राजधानी शिमला (Shimla) में बीते 24 दिनों से करुणामूलक संघ (Karunamulak Sangh) क्रमिक अनशन कर रहे हैं। लेकिन उनकी सुध लेने के लिए कोई एक मंत्री-संत्री नहीं पहुंचा है।
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बरसात के दिनों में भीग कर भी अपने हक और हुकूक की बात को ये अश्रित जिंदा रखे हुए हैं। सीएम जयराम ठाकुर को यह याद रखना चाहिए, ये वही परिवार है जिनके घर का कमाने वाला की ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी। सरकारी प्रावधान के अनुसार इन्हें नौकरी मिलनी थी, लेकिन नौकरी के बदले सरकार ने इन्हें अनशन दिया है। ताकि ये अपनी मांग को लड़कर लेना सीखें। क्योंकि इस लोकतंत्र में आम आदमी के हिस्से सब कुछ नियम कायदों से नहीं मिलता। ये करुणामूलक परिवार भरी बरसात में शिमला के कालीबाड़ी के समीप वर्षा शालिका में बैठे हुए हैं। सुबह उठो तो बारिश, रात सोए तो बारिश। पूरा का पूरा दिन यूं ही बरसात में कट रहा है। विरोध कर रहे आश्रितों का कहना है कि 15-20 साल हो गए हैं, लेकिन आज तक नौकरी नहीं मिला है। आधी उम्र अनशन, आंदोलन और नौकरी की आस में गुजर चुकी है। आज सीएम ने ओक ओवर में बीजेपी महिलाओं के राखी बांधने के बाद हिफाजत करने का वादा किया। लेकिन सीएम साहब भूल बैठे कि जब वे सीएम पद की शपथ ले रहे थे, तब उन्होंने एक शपथ नागरिकों के हितों की हिफाजत की भी ली थी।
रक्षाबंधन का दिन भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है पर आज के दिन इन आश्रितों के घर सुने पड़े हैं। बहनों को बिन राखी पहनाए घर लौटना पड़ा, क्योकि इनके भाई क्रमिक भूख हड़ताल पर भूखे प्यासे शिमला में बैठे हुए है। आश्रितों ने भी इस बार आर-पार का मन बना लिया है। लेकिन अबकी बार घर नौकरी लेकर ही जाएंगे। इस मौके पर करूणामलूक संघ के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार का कहना है कि भगवान ऐसे दिन किसी को ना दिखाए की त्यौहार के पर्व पर कोई परिवार घर से दूर वर्षाशालिका में बैठने को मजबूर हो।
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