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इस गांव में शाम सात बजे मंदिर से बजता है एक सायरन और बंद हो जाते हैं मोबाइल
वर्तमान में मोबाइल (Mobile) का प्रचलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। यदि हम यह कहें कि एक किस्म की लत ही लग गई है तो कोई अतिशयोक्ति (Hyperbola) नहीं होगी। वर्तमान में मोबाइल ने जहां आदमी को सुविधाएं दी हैं वहीं उसका नुकसान भी बहुत ज्यादा किया है। मोबाइल को सुविधाओं तक यूज करना तो ठीक था मगर वर्तमान में हम इसका अन्य चीजों के लिए बहुत ज्यादा इस्तेमाल किए जा रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि इसका शरीर पर उल्टा प्रभाव दिखने लगा। मनुष्य को मानसिक अवसाद, नींद ना आना, आंखों की रोशनी कम होना (Mental depression, sleeplessness, loss of eyesight), मेमोरी कम होना आदि बीमारियों ने घेर लिया (Diseases Engulfed)। मगर इसका तोड़ निकाला है महाराष्ट (Maharashtra) के सांगली जिले में स्थित मोहित्यांचे वडगांव गांव ने। यह गांव आजकल इसी के लिए सुर्खियों में चला हुआ है। इस गांव में एक मंदिर से शाम सात बजे एक सायरन बजता है और उसकी आवाज सुनते ही लोग मोबाइल, टेलीविजन सेट और दूसरे गैजेट्स को तुरंत बंद कर देते हैं। इस गांव डिजिटल डिटॉक्स (Digital Detox) गांव का नाम दिया जा रहा है। इस मुहिम को गांव के कुछ लोगों ने शुरू किया था और अब यह घर-घर में बेहद लोकप्रिय हो चुकी है। दरअसल यह मुहिम मोबाइल के असर के कारण शरीर में होने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए चलाई गई है।
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विशेष बात यह है कि इस मुहिम का समस्त गांव कड़ाई से पालन करता है। दरअसल करीब 3200 आबादी वाले इस गांव में एक मंदिर (Temple) है। इसी मंदिर को ठीक शाम सात बजे एक सायरन (Siren) बजता है जिसे सुनते ही फौरन लोग अपने मोबाइल, टीवी और अन्य गैजेट्स (Your mobile, TV and other Gadgets) को बंद कर देते हैं। इस मुहिम को चलाने के लिए गांव के सरपंच विजय मोहिते ने प्रस्ताव रखा था। यह प्रस्ताव लोगों ने काफी पसंद किया और इस उपलब्धि को इंटरनेट की दुनिया में मशहूर कर दिया। इस मुहिम का असर यह हुआ कि मंदिर से शाम सात बजे सायरन बजते ही लोग अपने सारे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बंद कर देते हैं।
सायरन बजने के इन 90 मिनटों में लोग किताबें पढ़ते है। या फिर सामूहिक मेलमिलाप करते हैं। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पढ़ाई में जुट जाते हैं। बहुत सारे लोग एक-दूसरे के सामने बैठकर बातचीत भी करते हैं। इस दौरान ये लोग एक-दूसरे का हालचाल पूछते हैं। वे अपना सुख-दुख बांटते हैं। इस मुहिम के 90 मिनट (90 Minutes) यानी ठीक साढ़े आठ बजे दूसरा सायरन बजता है। इसके बाद लोग अपनी-अपनी ईच्छा के अनुसार मोबाइल और टीवी ऑन कर लेते हैं। कहीं कोई इस नियम को तोड़ तो नहीं रहा है इसकी निगरानी के लिए एक वार्ड समिति का गठन भी किया गया है। इस गांव के सरपंच विजय मोहिते ने बताया कि स्वतंत्रता दिवस पर हमने महिलाओं की एक ग्राम सभा बुलाई और एक सायरन खरीदने का निर्णय लिया। इसके बाद आशा वर्कर्स, आंगनवाड़ी वर्कर्स, ग्राम पंचायत कर्मचारी, सेवानिवृत्त शिक्षकों को इस डिजिटल डिटॉक्स के बारे में जागरूकता फैलाने की ड्यूटी लगाई। इसके बाद वे घर-घर गए और इस मुहिम से जुड़ने की अपील की।