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‘टाइगर ऑफ वाटर’ के संरक्षण में Himachal सफल, 45.311 मीट्रिक टन हुआ उत्पादन
शिमला। प्रदेश सरकार द्वारा गोल्डन महाशीर (Golden Mahashir) को विलुप्त होने से बचाने के लिए शुरू की गई संरक्षण योजना के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। हिमाचल प्रदेश के जलाशयों और नदियों में इस प्रजाति की स्थिति में व्यापक स्तर पर सुधार हुआ है। गोल्डन महाशीर को ‘टाइगर ऑफ वाटर’ के नाम से भी जाना जाता है। विगत वर्षों में इनकी संख्या में गिरावट दर्ज की गई और वाशिंग्टन-स्थित इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज द्वारा इस प्रजाति को विलुप्त प्राय घोषित किया गया। प्रदेश सरकार के निरंतर प्रयासों से जिला मंडी (Mandi) स्थित मछियाल फार्म में कृत्रिम प्रजनन से गोल्डन महाशीर की संख्या में आशातीत बढ़ोतरी करने में सफलता हासिल हुई है। महाशीर मछली प्रदेश के 3000 किमी नदी क्षेत्र में से 500 किमी क्षेत्र में पाई जाती है, जिसमें 2400 किमी सामान्य पानी है। मत्स्य विभाग (Fisheries Department) द्वारा पिछले तीन वर्ष में प्रदेश में प्रजनन द्वारा गोल्डन महाशीर के लगभग 92500 अंडे तैयार किए गए। इस दौरान सर्वाधिक 45.311 मीट्रिक टन गोल्डन महाशीर मछली का उत्पादन दर्ज किया है। वर्ष 2019-20 के दौरान गोबिंद सागर में 16.182 मीट्रिक टन, कोल डैम में 0.275 मीट्रिक टन, पौंग डैम (Pong Dam) में 28.136 मीट्रिक टन और रणजीत सागर में 0.718 मीट्रिक टन महाशीर मछली उत्पादन हुआ था। वर्ष 2021-22 के दौरान गोबिंद सागर में 6.598 मीट्रिक टन, कोल डैम में 0.381 मीट्रिक टन, पौंग डैम में 11.250 मीट्रिक टन और रणजीत सागर में 0.340 मीट्रिक टन गोल्डन महाशीर मछली का उत्पादन हुआ है।
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पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्री वीरेंद्र कंवर (Animal Husbandry and Fisheries Minister Virender Kanwar) ने कहा कि महाशीर सर्वश्रेष्ठ स्पोर्टस फिश में से एक है। प्रदेश सरकार गोल्डन महाशीर मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी कदम उठा रही है। इसके तहत क्लोज सीजन के दौरान जल विद्युत ऊर्जा से 15 प्रतिशत पानी छोड़ने और नियमित रूप से गश्त के माध्यम से मछली के संरक्षण आदि के दृढ़ प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मत्स्य पालन विभाग मछलियों के कृत्रिम प्रजनन पर विशेष ध्यान दे रहा है। महाशीर के बीज के साथ नदी प्रणाली के संरक्षण और संवर्द्धन से राज्य में इको टूरिज्म (Eco Tourism) को बढ़ावा मिलेगा। प्रदेश में वर्ष 2017-18, 2018-19 और वर्ष 2019-20 (अब तक) में क्रमशः 20900, 28700 और 41450 गोल्डन महाशीर मछली के अंडों का उत्पादन दर्ज किया गया है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश की नदियों में मछियाल कई प्राकृतिक महाशीर अभयारण्य हैं, जहां लोग आध्यात्मिक कारणों से इनका संरक्षण करते हैं। मत्स्य विभाग भी मत्स्य पालन अधिनियम और नियमों को सख्ती से लागू करके इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहा है। इससे रोजगार के अवसर सृजित होने के अलावा मछुवारों की आर्थिकी भी मजबूत हुई है।मत्स्य पालन विभाग के निदेशक सतपाल मैहता ने कहा कि महाशीर सर्वश्रेष्ठ स्पोर्टस फिश (Sports Fish) में से एक है, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मछली पकड़ने वालों (एंग्लरों) को आकर्षित करती है। यह टोर परिवार से संबंध रखती है और हिमाचल में मुख्यतः टोर पिटुरोरा और टू टोर पाई जाती है। प्रवासी प्रवृति की ये मछली मानसून के दौरान प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थान के लिए अधिक ऑक्सीजन (Oxygen) मात्रा वाले जलाशयों की ओर रुख करती है। लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में घोषित होने के बावजूद यह राज्य के जलाशयों मुख्यतः पौंग जलाशय में बहुतायत में पाई जाती है।
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उन्होंने कहा कि राज्य के जल स्त्रोतों में 85 विभिन्न मछली प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें रोहू, कैटला और मृगल तथा ट्राउट शामिल हैं। गत वित्त वर्ष के दौरान 492.33 मीट्रिक टन मछली का राज्य के बाहर विपणन किया गया। मछलियों के वितरण के लिए 6 मोबाइल वैन का उपयोग किया जाता है और मछली पालकों को इन्सुलेटिड बॉक्स भी प्रदान किए गए हैं। प्रदेश सरकार द्वारा जिला शिमला के सुन्नी में नई माहशीर हैचरी एवं कार्प प्रजनन इकाई स्थापित की जा रही है। इस इकाई में सुरक्षित परिस्थितियों में प्रजनन के तरीकों को विकसित करने के लिए 296.97 लाख रुपये की अनुमानित लागत आएगी। यह राज्य में मछली फार्म के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। हिमाचल प्रदेश देश में महाशीर मछली उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। इस वर्ष रिकार्ड 10-12 हजार उच्चतम हैचिंग की आशा व्यक्त की गई है, जिसमें से अभी तक 41,450 अंडे तैयार किए जा चुके हैं।