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सहकारी बैंकों के लिए सरकार का नया क़ानून, जानें क्या होगा ग्राहकों पर असर
नई दिल्ली। मंत्रिमंडल (cabinet) की हुई बैठक में केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकों (Co-operative banks) के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के अब तक जो बैंक सरकार की निगरानी में आते थे, वे सीधे आरबीआई की निगरानी में होंगे। 24 जून को पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस संबंध में फैसला किया गया है। बैंकों में हो रहे घोटालों के मध्यनजर सरकार ने यह फैसला लिया है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दी जानकारी
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा- ‘कैबिनेट ने एक अध्यादेश पारित किया था जिस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो गए हैं। जावड़ेकर ने कहा कि अब जिस तरह शिड्यूल्ड बैंक को RBI रेगुलेट करता था उसी तरह अब सहकारी बैंकों पर भी नजर रखेगा। देश में 1482 शहरी सहकारी बैंक (Urban Cooperative bank) और 58 मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं। कुल मिलाकर सभी 1540 सहकारी बैंक RBI के सीधे रेगुलेशन में आ गए हैं।’
इन पर भी शिड्यूल बैंक की तरह निगरानी होगी और ऑडिट बढ़ेगा
सहकारी बैंकों पर अभी तक सिर्फ आरबीआई निगरानी करता आया है। सहकारी बैंकों (Co-operative banks) की देख रेख का काम RBI की कोऑपरेटिव बैंक सुपरवाइजरी टीम का होता था। लेकिन सामान्य तौर पर कोऑपरेटिव बैंक (Co-operative banks) छोटे लोन बांटते हैं लिहाजा यह सेक्शन कम सक्रिय रहता है। लिहाजा कई बार गड़बड़ियों का पता वक्त पर नहीं चल पाता। ऐसे में अब इन पर भी शिड्यूल बैंक की तरह निगरानी होगी और ऑडिट बढ़ेगा।
ग्राहकों के हित में है ये फैसला जानें क्यों ?
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये फैसला ग्राहकों के हित में है क्योंकि अगर अब कोई बैंक डिफॉल्ट करता है तो बैंक में जमा 5 लाख रुपए तक की राशि पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि वित्त मंत्री ने एक फरवरी 2020 को पेश किए बजट में इसे 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया है। रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि को-ऑपरेटिव बैंकों (Co-operative banks) का पैसा किस क्षेत्र के लिए आवंटित किया जाना चाहिए। इसे प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग भी कहा जाता है।