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High Court : पीने लायक नहीं बद्दी का पानी, आईआईटी मंडी की रिपोर्ट में हुए चौंकाने वाले खुलासे
Himachal High court : बद्दी बरोटीवाला औद्योगिक क्षेत्र (Baddi Barotiwala Industrial Area) में भूजल प्रदूषण खतरनाक स्थिति में आ गया है। भूतल से 30 से 80 मीटर की गहराई में यह प्रदूषण पाया गया है। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने आईआईटी मंडी (IIT Mandi) द्वारा इस क्षेत्र में भूजल प्रदूषण (Groundwater Pollution) से जुड़ी रिपोर्ट को देखने के बाद पाया कि प्राकृतिक और औद्योगिक (Natural and Industrial), दोनों प्रकार के स्रोतों से उत्पन्न होने वाले भूजल में भारी धातुओं और जियोजेनिक यूरेनियम (Geogenic Uranium) के तत्व पाए गए हैं। इस तरह जल में कार्सिनोजेनिक रसायनों की उपस्थिति से मानवीय स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो गया है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिए थे आदेश
मुख्य न्यायाधीश एम एस रामचंद्र राव और न्यायाधीश (Chief Justice M S Ramachandra Rao and judges) सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Pollution Control Board) को आदेश दिए कि वह बद्दी बरोटीवाला औद्योगिक क्षेत्र में इस चिंताजनक भूजल प्रदूषण से निपटने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से कोर्ट के समक्ष रखे। कोर्ट ने बीबीएनडीए (BBNDA) को भी इस रिपोर्ट पर अपनी कार्यवाई से कोर्ट को अवगत कराने के आदेश दिए। उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने प्रदेश सरकार (Himachal Government) को बीबीएन क्षेत्र में भूजल प्रदूषण की जांच आईआईटी मंडी से करवाने के आदेश दिए थे। इस मामले में हाईकोर्ट ने सोलन जिले के बद्दी में कॉमन एफफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता से कम दोहन किये जाने के मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सहित जिलाधीश सोलन, एसडीएम नालागढ़, सीईओ बद्दी बरोटीवाला नालागढ़ विकास प्राधिकरण, प्रतिनिधि बद्दी बरोटीवाला नालागढ़ इंडस्ट्रीस असोसियेशन व सीईओ बद्दी इनफ्रास्ट्रक्चर बद्दी टेक्निकल ट्रनिन्ग इन्स्टिट्यूट से स्टेट्स रिपोर्ट तलब की थी।
गंदे पानी का नहीं हो रहा सही उपचार
मामले के अनुसार सोलन जिला के बद्दी में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी का सही से उपचार न होने के कारण बद्दी क्षेत्र में प्रदूषण की मात्रा लगातार बढ़ रही है। करीब 60 करोड़ की लागत से इस क्षेत्र में कॉमन एफफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया है। इसकी प्रस्तावित क्षमता 250 लाख लीटर प्रतिदिन गन्दे पानी का उपचार करने की है जबकि इसमें 110 लाख लीटर प्रतिदिन गन्दे पानी का ही उपचार किया जा रहा है। ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता से कम दोहन किये जाने की बात तब सामने आई, जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारीयों ने यह बात ज़िला परिषद की त्रैमासिक बैठक में बताई थी। आरोप है कि क्षेत्र के प्राकृतिक जल स्त्रोत औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गन्दे पानी से प्रदूषित हो रहे हैं जिससे लोग बीमार हो रहे हैं। मामले पर सुनवाई 16 जुलाई को होगी।