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हल्दीराम की खत्म हो रही कहानी के पीछे का सच, क्यों आई बिकने की नौबत- यहां पढ़े सब कुछ
Haldiram: नेशनल डेस्क। देश की प्रसिद्ध नमकीन और स्नैक्स बनाने वाली कंपनी ‘हल्दीराम’ (Haldiram) जल्द बिक सकती है। जी हां, खबरें हैं कि ब्लैकस्टोन (Blackstone) के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम ने कंपनी की 75 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की बोली लगाई है। इसके लिए ब्लैक स्टोन के अलावा अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी, (Abu Dhabi Investment Authority) सिंगापुर स्टेट फंड GIC ने भी बोली लगाई है।
क्यों आई हल्दीराम के बिकने की नौबत?
रिपोर्ट के मुताबिक, इस बोली के लिए ‘हल्दीराम’ की वैल्यूएशन 8 से 8.5 अरब डॉलर यानी 66,400 करोड़ से 70,500 करोड़ रुपये लगाई गई है। हालांकि ब्लैकस्टोन ने अभी ‘Non-Binding’ ऑफर ही रखा है, यानी ब्लैकस्टोन ‘हल्दीराम’ को खरीदने के लिए बाध्य नहीं है और ना ही ‘हल्दीराम’ ये डील करने के लिए बाध्य है, लेकिन अगर ये सौदा पक्का हो जाता है तो ये भारत (India) में अभी तक की सबसे बड़ी इक्वटी खरीद होगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर जब सब ठीक चल रहा है तो 87 साल पुरानी इस कंपनी को बिकने की नौबत क्यों आ गई है? वहीं, आपको बता दें कि इससे पहले हल्दीराम को टाटा, पेप्सी को जैसी कंपनियों ने खरीदने की कोशिश की थी। लेकिन सहमति नहीं बन पाई
नई जेनरेशन नहीं दिखा रही दिलचस्पी
देश की आजादी से पहले ‘हल्दीराम’ की शुरुआत हुई। साल 1937 में गंगा बिशन अग्रवाल (Ganga Bishan Agarwal) ने बीकानेर में एक छोटी से दुकान की थी। लेकिन अब परिवार की नई जेनरेशन कंपनी को आगे बढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दे रही है। अग्रवाल परिवार की नई जेनरेशन ने खुद को कंपनी के डे टू डे ऑपरेशन से भी अलग कर लिया। कंपनी के CEO पद की जिम्मेदारी संभालने के बजाए केके. चुटानी को नियुक्त कर दिया।
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तीन हिस्सों में बंटी है कंपनी
आपको बता दें कि ‘हल्दीराम’ कंपनी तीन हिस्सों में बंटी हुई है। एक फैक्शन कोलकाता से, एक दिल्ली और एक नागपुर से ऑपरेट होती है। दिल्ली का बिजनेस मनोहर अग्रवाल और मधुसूदन अग्रवाल संभालते हैं तो नागपुर का बिजनेस कमलकुमार शिवकिशन अग्रवाल संभालते है। इस सौदे में यहीं दोनों हिस्से शामिल है। हालांकि अभी तक हल्दीराम की तरफ से इस डील को लेकर कोई आधिकारिक बयान (Official Statement) सामने नहीं आया है।