-
Advertisement

सीपीएस नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट ने सुख सरकार को जारी किया नोटिस ,21 अप्रैल को सुनवाई
शिमला। संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती देने का मामला एक बार फिर प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष पहुंच चुका है। राज्य सरकार द्वारा हाल ही में की गई छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती देने के लिए प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया गया है। हाईकोर्ट ने इस आवेदन पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है। पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस द्वारा दायर आवेदन पर न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले पर आगामी सुनवाई 21 अप्रैल को निर्धारित की है।
सभी मुख्य संसदीय सचिव लाभ के पदों पर तैनात है
गौरतलब है कि पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने वर्ष 2016 में बनाए गए संसदीय सचिवों के बदले छह मुख्य संसदीय सचिवों को प्रतिवादी बनाए जाने के लिए आवेदन किया है। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2016 में हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को चुनौती दी थी। अभी तक हाईकोर्ट में यह मामला लंबित है। उस समय याचिकाकर्ता ने तात्कालिक नौ मुख्य संसदीय सचिवों को प्रतिवादी बनाया था। आवेदन के माध्यम से अदालत को बताया गया कि पुरानी सरकार बदल चुकी है और मामले का निपटारा करने के लिए नए मुख्य संसदीय सचिवों को प्रतिवादी बनाया जाना आवश्यक है। आवेदन में अर्की विधानसभा क्षेत्र से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल बराकटा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल को प्रतिवादी बनाए जाने की गुहार लगाई है। दलील दी गई है कि हिमाचल और असम संसदीय सचिव की नियुक्ति के लिए बनाए गए अधिनियम एक जैसे है। आवेदन में आरोप लगाया है कि सरकार को यह पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने असम और मणिपुर में संसदीय सचिव की नियुक्ति के लिए बनाए गए अधिनियम को गैर कानूनी ठहराया है। इसके बावजूद भी सरकार ने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति की गई है।आरोप लगाया गया है कि सभी मुख्य संसदीय सचिव लाभ के पदों पर तैनात है जिन्हें प्रतिमाह 2,20,000 रूपये बतौर वेतन और भत्ते के रूप में अदा किया जाता है। याचिका में हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को निरस्त करने की गुहार लगाई गई है।
मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कानून के प्रावधानों के विपरीत
संस्था ने याचिका में यह आरोप लगाया है कि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कानून के प्रावधानों के विपरीत है। यह लोग मंत्रीयों के बराबर वेतन व अन्य सुविधाएं ले रहे हैं जोकि प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पहले ही एक मामले में जारी किए गए निर्णय के विपरीत है । यही नहीं संसदीय सचिवों की नियुक्ति को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट भी गैरकानूनी ठहरा चुका है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में किए गए संशोधन के मुताबिक किसी भी प्रदेश में मंत्रियों की संख्या विधायकों की कुल संख्या का 15 फ़ीसदी से अधिक नहीं हो सकती। प्रदेश में मुख्य संसदीय सचिवों को नियुक्ति देने के पश्चात मंत्रियों की संख्या में 15 फीसदी से अधिक की वृद्धि हो गई है इस कारण मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द किया जाना चाहिए।
यह भी पढ़े:हाईकोर्ट ने किया न्यायिक सेवा अधिकारियों के तबादला , किसे कहां भेजा यहां पढ़े
हिमाचल और देश-दुनिया की ताजा अपडेट के लिए join करें हिमाचल अभी अभी का Whats App Group