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हिमाचल हाईकोर्ट ने वरिष्ठता मामले में दी महत्वपूर्ण व्यवस्था, एक क्लिक पर पढ़ें
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने वरिष्ठता के मामले में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने निर्णय सुनाया है कि संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए नियम वैधानिक नियम हैं। इन नियमों को प्रशासनिक आदेश से निरस्त नहीं किया जा सकता। अदालत (Court) ने कहा कि सेवा में वरिष्ठता (Seniority) पाने का अधिकार मौलिक नहीं बल्कि कानूनी अधिकार है। अदालत ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि सरकार प्रशासनिक निर्देशों के आधार पर वैधानिक नियमों में संशोधन नहीं कर सकती है। लेकिन यदि नियम किसी खास मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है तो उस स्थिति में सरकार इस कमी को अनुपूरक नियम बना कर पूरा कर सकती है।
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ऊना जिला के कुलदीप कुमार और अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया। अदालत ने 10 जुलाई, 1997 को जारी उन कार्यकारी निर्देशों को निरस्त कर दिया, जिसके तहत प्रतिवादियों को वरीयता का लाभ देते हुए कानूनगो के पद पर पदोन्नत किया गया था। अदालत ने प्रतिवादियों को कानूनगो के पद पर दी गई पदोन्नती को भी रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने राजस्व विभाग (Revenue Department) को दोबारा वरीयता सूची बनाने के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता और अन्य वर्ष 1998 में राजस्व विभाग में पटवारी के पद पर नियुक्त हुए थे। भर्ती एवं पदोन्नती नियम 1992 के तहत उनकी वरीयता तय की गई। इस वरीयता के आधार पर उनकी पदोन्नती भी की गई। राज्य सरकार ने वर्ष 1997 में कार्यकारी निर्देश के तहत भर्ती एवं पदोन्नती नियम 1992 में संशोधन किया। विभाग ने पटवारी के पद की वरीयता इन कार्यकारी निर्देश के आधार पर की गई। याचिकाकर्ताओं से कनिष्ठ को कार्यकारी निर्देश के आधार पर वरीयता का लाभ देते हुए वरिष्ठ बनाया गया। याचिकाकर्ताओं ने इस विसंगति को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। अदालत ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए यह निर्णय सुनाया।
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