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करुणामूलक को नौकरी ना देना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने लगाई वन विभाग पर 2 लाख की कॉस्ट
Himachal HighCourt : शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने करुणामूलक आधार (Karunamoolak Naukri) पर नौकरी पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर करने पर वन विभाग पर 2 लाख रुपये की कॉस्ट लगाई है। न्यायाधीश विरेंदर सिंह ने याचिका से जुड़े तथ्यों व रिकॉर्ड का अवलोकन करने के पश्चात पाया कि वन विभाग (Forest Department) के अधिकारियों का रवैया प्रार्थी के प्रति पूरी तरह से भेदभाव पूर्ण रहा है। इसी कारण कोर्ट (High Court) को इस तरह का आदेश पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वन कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत थे प्रार्थी के पिता की
याचिका (Petition) में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पिता की 20 जुलाई 2007 को मृत्यु हो गई थी। जो वन विभाग (Forest Department) में वन कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत थे। इसके बाद प्रार्थी ने, कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते वन रक्षक पद के लिए पूरी तरह से पात्र होने के कारण, प्रचलित नीति के अनुसार, वन रक्षक के रूप में करुणामूलक आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था। उसके आवेदन पर कार्रवाई की गई और उसे 3 सितम्बर 2008 को वन विभाग की ओर से साक्षात्कार (Interview) के लिए बुलाया गया। साक्षात्कार 9 सितम्बर 2008 को आयोजित किया गया था। प्रार्थी साक्षात्कार में उपस्थित हुआ और उसने ‘शारीरिक माप’, शारीरिक दक्षता परीक्षण’ (Physical Efficiency Test) और ‘व्यक्तिगत साक्षात्कार’ उत्तीर्ण किया। इसके बाद,उसका पूरा मामला वन संरक्षक, बिलासपुर, द्वारा प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भेजा गया था। हालांकि फिर भी उसे प्रतिवादियों द्वारा नियुक्त नहीं किया गया ।इसके बाद प्रार्थी ने सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी।
वन रक्षक के पद पर पांच व्यक्तियों को नियुक्त किया था
जानकारी पत्र दिनांक 18 अक्टूबर 2014 के माध्यम से प्रदान की गई। जिसमें यह दर्शाया गया था कि प्रतिवादी विभाग (Defendant Department) ने 45 उम्मीदवारों को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की पेशकश की थी, जिनमें से 10 वन रक्षकों (Forest Guards) को नियुक्त किया गया था। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्रदान की गई एक अन्य जानकारी के अनुसार, वर्ष 2009 में प्रतिवादियों ने करुणामूलक आधार (Karunmoolak Naukri) पर वन रक्षक के पद पर पांच व्यक्तियों को नियुक्त किया था। कोर्ट ने वन विभाग के इस कृत्य को भेदभाव पूर्ण पाया और यह अहम निर्णय सुनाया।
दो महीने की अवधि के भीतर दें नियुक्ति
कोर्ट ने दिनांक 22 सितम्बर,2015 के वन विभाग (Forest Department) द्वारा पारित आदेश (Passed Order) को निरस्त करते हुए प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे दो महीने की अवधि के भीतर प्रार्थी को करुणामूलक आधार पर वन रक्षक (Forest Guard) के पद पर नियुक्त करें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वन विभाग प्रार्थी का मामला जानबूझकर, अवैध और दुर्भावनापूर्ण तरीके से लटकाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से 2 लाख रुपये की कॉस्ट की राशि वसूलने के लिए स्वतंत्र है।