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चीड़ की पत्तियों का ऐसा इस्तेमाल, जंगल हो रहे निहाल, जेब हुई मालमाल
वी कुमार/ मंडी। गर्मियों के मौसम में चीड़ की जो पत्तियां जंगलों की आग का मुख्य कारण बनती हैं, उन का कुछ ऐसे इस्तेमाल किया जा रहा है कि जंगल भी सुरक्षित बच रहे हैं और आमदनी भी हो । जाईका (जापान इंटरनेशनल कोऑप्रेशन एजेंसी) परियोजना के तहत वन मंडल मंडी में विभिन्न स्वयं सहायता समूहों का गठन करके ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर स्वरोजगार के साथ जोड़ने का बेहतरीन प्रयास हुआ है। ग्रामीण महिलाएं जंगलों में गिरी चीड़ की पत्तियों को एकत्रित करके या तो उनके उत्पाद बनाती हैं या फिर उन्हें बेच देती हैं। चीड़ की पत्तियों के इतने सुंदर उत्पाद बनाए जा रहे हैं जिन्हें देखकर आप यह कह ही नहीं सकते कि इन्हें चीड़ की पत्तियों से बनाया गया हो। बनाए जा रहे उत्पादों में प्रमुख रूप से छोटी टोकरियां, फ्लावर पॉट, चपाती बॉक्स, पैन स्टैंड, कोस्टर सेट और फ्रूट ट्रे इत्यादि शामिल हैं।
घर का काम निपटाने के बाद एकत्र करती हैं पत्तियां
ग्रामीण महिलाएं अपने घर के कार्य निपटाने के बाद जंगलों से चीड़ की पत्तियों को एकत्रित करती हैं और फिर उनके उत्पाद बनाती हैं। हालांकि उत्पाद बनाने के अलावा जो चीड़ की पत्तियां बचती हैं उन्हें 3 रूपए प्रतिकिलो की दर से बेच देती हैं। बता दें कि चीड़ की पत्तियों से ब्रेकेट्स बनाने के कुछ उद्योग क्षेत्र में लगे हैं जो इनकी खरीद करते हैं। इससे भी महिलाओं को हर महीने हजारों की आमदनी हो रही है। जाईका परियोजना वन मंडल मंडी के एसएमएस जितेन शर्मा ने बताया कि पूरे मंडल में 28 कमेटियों का गठन किया गया है। ग्रामीण स्तर पर महिलाओं और अन्य लोगों को जंगलों के साथ जोड़कर स्वरोजगार भी दिया जा रहा है और वनों के संरक्षण पर भी कार्य किया जा रहा है।
स्टॉक कम होने से जंगलों में आग लगने का खतरा भी कम
वन मंडल मंडी के उप अरण्यपाल वासु डोगर ने बताया कि जाईका परियोजना के तहत जो कार्य चले हैं उससे जंगलों से चीड़ की पत्तियों का स्टॉक कम हो रहा है। स्टॉक कम होने से जंगलों में आग लगने का खतरा भी कम हो रहा है जिससे जंगल सुरक्षित बच रहे हैं। निश्चित तौर पर जाईका परियोजना आज न सिर्फ जंगलों के सही रख रखाव के लिए कारगर साबित हो रही है बल्कि इससे ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वरोजगार भी मिल रहा है।
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