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सुरंग के भीतर रिसते पानी को चाटकर जिंदा रहे मजदूर, दहला देने वाली कहानी
नेशनल डेस्क, देहरादून। उत्तरकाशी के सिल्क्यारा (Silkyara Tunnel Tragedy In Uttarkashi) में 17 दिन से फंसे मजदूरों ने मंगलवार को बाहर निकलकर अपनी जिजिविशा की लोमहर्षक कहानी सुनाई है। मौत से जूझते इन मजदूरों ने जिंदा रहने के लिए पत्थरों से रिसते पानी को चाटकर (Licking Water On Stone) अपनी प्यास बुझाई। झारखंड के अनिल बेदिया ने बताया कि कैसे 10 दिनों तक उन्होंने भूख और प्यास से भी जंग लड़ी। बेदिया ने बताया कि 6 इंच की नई पाइप लगने तक उन्होंने मूरी (मुरमुरे) खाकर भूख मिटाई तो पत्थरों से रिसते पानी को चाटकर प्यास को शांत किया।
पहले तो सभी ने उम्मीदें खो दी थीं
झारखंड के रहने वाले 22 साल के अनिल दिवाली के दिन उस वक्त सुरंग फंस गए, जब यमुनोत्री नेशनल हाईवे (Yamunotri National Highway) पर निर्माणाधीन इस टनल में अचानक हजारों टन मलबा गिर गया। सिलक्यारा गांव के पास सुरंग में जोरदार आवाज के साथ जब मलबा (Debris) गिरा तो अंदर काम कर रहे सभी मजूदर बेहद डर गए। बाहर निकलने का रास्ता बंद होते देख पहले तो उन्हें लगा कि जैसे अब अंदर ही दफन हो जाएंगे। बुधवार सुबह अनिल ने अपने परिजनों से फोन पर बातचीत करते हुए अपनी आपबीती (Story) बताई। उन्होंने कहा, ‘तेज चीखों से हवा गूंज उठी। हम सबने सोचा कि अब सुरंग में ही दफन हो जाएंगे। शुरुआत के कुछ दिन हम सबने उम्मीदें खो दी थीं।’
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41 में से 15 झारखंड के थे
अनिल ने उन मंजरों को याद करते हुए कहा, ‘यह बहुत डरावनी स्थिति थी… हमने पत्थरों पर रिसते पानी को चाटकर अपनी प्यास बुझाई और 10 दिन तक मुरी खाकर जिंदा रहे।’ बेदिया रांची (Ranchi) के बाहरी इलाके में स्थिति खिराबेडा गांव के रहने वाले हैं। इस गांव के 13 लोग सुरंग में काम करते थे और वह 1 नवंबर को उन लोगों के साथ काम की तलाश में वहां पहुंचा था। जिस समय मलबा गिरा सुरंग में इन 13 में से 3 लोग ही थे। सुरंग में फंसे 41 मजूदरों में से सबसे अधिक 15 झारखंड (Jharkhand) के रहने वाले थे। यही वजह है कि उत्तराखंड में मिशन पूरा होने की खबर मिलते ही पूरा झारखंड भी खुशी से झूम उठा।