-
Advertisement
घाटे में चली गई भारत के बैंकिंग सिस्टम की लिक्विडिटी, जानिए ऐसा क्यों हुआ?
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने इस साल मई से जुलाई के बीच बैंकों की लिक्विडिटी में कमी लाने का कदम उठाया था, जिसका नतीजा यह निकला है कि बैंकिंग सिस्टम (Indian banking system) की लिक्विडिटी चालू वित्त वर्ष में पहली बार घाटे में चली गई है। यह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अस्थायी तरलता निकासी के कदम और टैक्स आउटफ्लो के कारण हुआ है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार 21 अगस्त को बैंकिंग सिस्टम लिक्विडिटी (Banking system liquidity) घाटे में है। यह 236 अरब रुपये (2.84 अरब डॉलर) है।
इसलिए आई गिरावट
इस महीने की शुरुआत में बैंकों का सरप्लस 2.8 लाख करोड़ रुपये के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। लेकिन इसके बाद से यह गिर रहा है। यह गिरावट तब से आ रही है, जब से आरबीआई ने बैंकों को 19 मई से 28 जुलाई के बीच जमा में वृद्धि पर 10% का CRR रखने के लिए कहा। इससे एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की निकासी हुई है।
यह भी पढ़े:कर्ज न चुका पाने पर ‘दंडात्मक शुल्क’ लगेगा, ‘दंडात्मक ब्याज’ नहीं; RBI निर्देश
जरूरत से ज्यादा नकदी आई थी
असल में 2 हजार रुपये के नोट वापस लेने से बैंकिंग सिस्टम में जरूरत से ज्यादा नकदी आ गई थी। इसको कम करने के लिए रिजर्व बैंक ने एक अहम कदम उठाया था। लिक्विडिटी यानी नकदी को घटाने के लिए RBI ने बैंकों को 19 मई से 28 जुलाई 2023 के बीच नेट डिमांड टाइम लायबिलिटी (NDTL) में अतिरिक्त 10 फीसदी I-CRR मेंटेन करने को कहा था। यह घोषणा आरबीआई एमपीसी की पिछली बैठक में हुई थी। इंक्रिमेंटल कैश रिजर्व रेशियो एक ऐसा तरीका है, जिसे आरबीआई बैंकिंग सिस्टम में अचानक बढ़ी हुई लिक्विडिटी को कम करने के लिए इस्तेमाल करता है।
