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Mother’s Day Special – बच्चे के हर दर्द-हर जरूरत को समझे मां
एक औरत अपनी असल जिंदगी में बहुत से किरदार निभाती है जिसमें सबसे खास होता है मां का किरदार। मां यानी एक बच्चे का सारा संसार। यूं तो जिंदगी शुरू से अंत तक मां की ही होती है लेकिन इसके लिए एक दिए भी रखा गया गया जिसे मदर्स डे के नाम से मनाया जाता है। इस बार रविवार 10 मई को मदर्स डे (Mother’s Day) मनाया जाएगा। मां को बहुत ऊंचे सिंहासन पर बैठाकर उसकी भूमिका का गुणगान किया जाना, मदर्स डे का आम चलन है। बहुत सारी मांओं को तो पता भी नहीं चलता कि ऐसा कोई दिन आया और चला भी गया। उसे मां होने से अवकाश मिले, तब तो वह अपनी भूमिका पर नज़र डाले।
मिस यूनिवर्स मानुषी छिल्लर ने प्रतियोगिता के दौरान पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था कि मां को सब से ज्यादा सैलरी पाने का हकदार बताया था और साथ ही मां की गरिमा को और बढ़ाते हुए यह भी कहा कि मां के वात्सल्य की कीमत कैश के रूप में नहीं, बल्कि आदर और प्यार के रूप में ही अदा की जा सकती है। मां बनते ही मां के कार्यक्षेत्र का दायरा बहुत विकसित हो जाता है लेकिन निश्चित रूप से मां को ‘संपूर्ण और सम्माननीय मां’ उस के वे दैनिक कार्य नहीं बनाते, बल्कि एक मां को महान उस की वह आंतरिक शक्ति बनाती है, जो उसे एक ‘सिक्स्थ सैंस’ के रूप में मिली होती है, जिस के बल पर मां बच्चे के अंदर इस हद तक समाहित हो जाती है कि अपने बच्चे की हर बात, हर पीड़ा, हर जरूरत, उस की कामयाबी और नाकामयाबी हर बात को बिना कहे केवल उस का चेहरा देख कर ही भांप लेती है।
मां का कर्तव्य केवल अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करना ही नहीं होता, बल्कि मां की और भी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं। अपने बच्चों को समझना, जानना और उन पर विश्वास करना, उनका उचित मार्गदर्शन और चरित्र निर्माण कर के उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना भी मां की जिम्मेदारियों में शामिल होता है। जहां एक तरफ मां का भावनात्मक संबल किसी भी बच्चे का सब से बड़ा सहारा होता है, वहीं दूसरी तरफ मां के विश्वास और मार्गदर्शन में वह शक्ति होती है, जिससे वह अपने बच्चे को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकती है।
हालांकि अब वक्त बदल रहा है और वक्त के साथ मां की जिम्मेदारियां भी बदल रही हैं। पहले मां के पास शिक्षा का ज्ञान नहीं होता था पर वह व्यावहारिक और सांस्कारिक ज्ञान देती रहती थी पर आज मां के पास व्यावहारिक और सांस्कारिक ज्ञान के साथसाथ शैक्षणिक ज्ञान भी है। आज मां अपने बच्चे को और बेहतर भविष्य दे सकती है, किंतु समयाभाव आज बहुत सी मांओं को उन के कर्त्तव्य पूरे करने से दूर कर रहा है, जिस का दुष्परिणाम समाज को भुगतना पड़ रहा है। आज परिवेश बहुत तेजी से बदल रहा है, जिसकी वजह से हर उम्र के बच्चों को अलगअलग प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार बच्चे अपनी समस्याओं को अपने मातापिता से शेयर नहीं करते हैं और अकेले उन से जूझते रहते हैं। किशोरवय बच्चों में आक्रोश भरता जा रहा है और वे बिना सोचेसमझे कोई भी कदम उठाते चले जा रहे हैं। उन्हें संभालने और संयमित परवरिश का भार मां के ही कंधों पर है और समय के साथ-साथ वह न केवल बढ़ता जा रहा है, बल्कि मां की और जागरूकता मांग रहा है।