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समय का पहिया घूमा और हिमाचल की राजनीति में होने लगा नए सूर्य का उदय
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में अब एक नए सूर्य का उदय होने जा रहा है क्योंकि राजनीति में दशकों तक अपनी चमक बिखेरने वाले कई सितारे इस बार की चुनावी फिल्म के पर्दे पर नजर नहीं आएंगे. सबसे बड़े चेहरे के तौर पर कांग्रेस की राजनीति के किंग वीरभद्र सिंह अब देहरूप में नहीं हैं. पांच दशक से भी अधिक समय तक हिमाचल की राजनीति को अपने ही तरीके से प्रभावित करने वाले वीरभद्र सिंह का विगत वर्ष निधन हो गया था. वे अर्की सीट से चुनाव जीते थे. वहीं हिमाचल में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री पंडित सुखराम अब दुनिया में नहीं रहे…. हिमाचल और देश की राजनीति में उनका योगदान सराहनीय रहा है। पंडित सुखराम की राजनीति के कायल राजा वीरभ्रद सिंह भी थे और प्रेम कुमार धूमल भी मानते थे की पंडित सुखराम में कुछ तो खास है। इसी तरह कांगड़ा से कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता जीएस बाली भी अब संसार में नहीं हैं. वे कांग्रेस सरकार में प्रभावशाली मंत्री रहे हैं. कांगड़ा जिला के ही एक अन्य नेता सुजान सिंह पठानिया का भी निधन हो चुका है. ऊपरी शिमला में भाजपा को स्थापित करने वाले नेता नरेंद्र बरागटा का भी देहांत हो चुका है. ये सभी अब हिमाचल की राजनीति में स्मृतियों में हैं.
वहीं, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स स्वास्थ्य संबंधी कारणों से पिछली बार भी चुनाव नहीं लड़ी थीं. इस बार भी वे चुनावी मैदान में नहीं होंगी. भाजपा का सियासी सूरमा और पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के भी चुनाव लड़ने पर संशय है. कारण ये है कि भाजपा में एक खास उम्र की सीमा पार कर चुके नेताओं को टिकट नहीं दिया जाता. इसी कड़ी में भाजपा के कई और नेता भी शामिल होंगे. भाजपा के ही प्रभावशाली नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री और प्रेम कुमार धूमल के समधी गुलाब सिंह ठाकुर भी चुनावी मैदान में नजर नहीं आएंगे. इस तरह कई दिग्गज नेता इस बार चुनावी मैदान में नहीं दिखेंगे. ये ऐसे चेहरे हैं, जिन्हें चुनावी राजनीति में देखने की हिमाचल की जनता को आदत सी हो गई थी.