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हमेशा के लिए आंखों से ओझल ना हो जाए गौरैया …
20 मार्च यानी आज पूरी दुनिया में विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। आज हम इसी छोटी सी प्यारी सी गौरेया के बारे में बात करेंगे। गौरैया को झुंड में रहना पसंद है। भोजन के लिए गौरैया का एक झुंड करीब दो मील की दूरी तय करता है। गौरैया की लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है, जबकि इसका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है।
गौरैया ज्यादातर झुंड में रहती है। भोजन की तलाश में यह 2 से 5 मील तक चली जाती है। यह घोंसला बनाने के लिए मानव निर्मित एकांत स्थानों या दरारों, पुराने मकानों का बरामदा, बगीचों की तलाश करती है। अक्सर यह अपना घोंसला मानव आबादी के निकट ही बनाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि गौरैया इंसानों की दोस्त भी है। घरों के आसपास रहने की वजह से यह उन नुकसानदेह कीट-पतंगों को अपने बच्चों के भोजन के तौर पर इस्तेमाल करती थी, जिनका इस वक्त प्रकोप इंसानों पर भारी पड़ता है। कीड़े खाने की आदत से इसे किसान मित्र पक्षी भी कहा जाता है। अनाज के दाने, जमीन में बिखरे दाने भी यह खाती है। मजेदार बात यह कि खेतों में डाले गए बीजों को चुगकर यह खेती को नुकसान भी नहीं पहुंचाती। यह घरों से बाहर फेंके गए कूड़े-करकट में भी अपना आहार ढूंढती है।
इस सबके बावजूद भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गौरैया की संख्या में करीब 60 प्रतिशत तक की कमी आई है। गौरेया की घटती संख्या को देखते हुए ही इसके संरक्षण के लिए ‘विश्व गौरैया दिवस’ पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। अब हर साल 20 मार्च को पूरी दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। बड़ी बात यह है कि यह पक्षी शहर ही वही बल्कि गांव से भी लुप्त होती जा रही है। पहले इन छोटे पक्षियों का झुंड घुमते हए दिखाई देते थे लेकिन अब इसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है।
भले ही कभी घर-आंगन में चहकने वाली गौरैया बेशक मौजूदा वक्त में कम नजर आती हो, लेकिन दिल्ली में अभी इसने प्रजनन क्षमता नहीं खोई है। दिल्ली सरकार ने गौरैया के संरक्षण के लिए इसे राज्य पक्षी का दर्जा दे रखा है। सरकार की कोशिश है कि गौरैया को फिर से दिल्ली में वापस लाया जाए। वैज्ञानिकों का मानना है कि गौरैया की 40 से ज्यादा प्रजातियां हैं, लेकिन शहरी जीवन में आए बदलावों से इनकी संख्या में 80 फीसदी तक कम हुई है। हालांकि पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना बायो डायवर्सिटी समेत दूसरे पार्कों में गौरैया की वापसी हो रही है, लेकिन यह इस बात का भी सुबूत है कि पर्यावास खत्म होने से इस चिड़िया ने दूसरे स्थानों पर दिखाई देना बंद कर दिया है। अगर गौरैया के रहने व खाने का अनुकूल माहौल मिले तो दोबारा दिल्ली में उसकी चहचहाहट सुनी जा सकती है।
विश्व में गौरैया की 26 प्रजातियों में से 5 भारत में पाई जाती हैं। हमें गौरैया को इसलिए भी बचाने की जरूरत है क्योंकि गौरैया का कम या विलुप्त होना इस बात का संकेत है कि हमारे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है और इसका खामियाजा खामियाजा हमें आज नहीं तो कल भुगतना ही पड़ेगा। अगर हम गौरैया को संरक्षित कर उसे लुप्त होने से बचाते हैं तो वह भी हमारे पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान देगी। गौरेया अपने बच्चों को ‘अल्फा’ और ‘कटवर्म’ नामक कीड़े भी खिलाती है जो हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। हमारी छोटी-सी कोशिश गौरैया को जीवनदान दे सकती है, जरूरी है कि अगर वह हमारे घर में घोंसला बनाए तो उसे बनाने दें।
हम आज गौरेया दिवस पर सिर्फ चर्चा ना करते हुए अब कुछ ऐसी बातों के बारे में बात करते हैं जिनसे आप गौरेया को बचा सकते हैं। हमारी छोटी-सी कोशिश गौरैया को जीवनदान दे सकती है. सबसे पहली बात कि अगर गौरेया आपके घर में घोंसला बनाए तो उसे बनाने दें. हो सके तो नियमित रूप से अपने आंगन, खिड़कियों और घर की बाहरी दीवारों पर उनके लिए दाना-पानी रखें. गर्मियों में ना जाने कितनी गौरैया प्यास से मर जाती हैं तो आप उनके लिए किसी ना किसी चीज में पानी भरकर जरूर रखें। इसके अलावा उनके लिए कृत्रिम घर बनाना भी बहुत आसान है और इसमें खर्च भी ना के बराबर होता है. जूते के डिब्बों, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों और मटकियों में छेद करके इनका घर बना कर उन्हें उचित स्थानों पर लगाया जा सकता है. इंटरनेट पर खोजेंगे, तो गौरैया के लिए घर बनाने के बड़े आसान तरीके आपको आराम से मिल जाएंगे. एक बात और आपको ध्यान में रखना जरूरी है कि गौरैया को कभी नमक वाला खाना नहीं डालना चाहिए, नमक उनके लिए हानिकारक होता है. प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए. …… आपकी इन छोटी-छोटी कोशिशों से गौरेया फिर चहचहाती हुई आपके आसपास लौट आएगी।