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हिट विकेट हो गए ‘गुरु’
क्रिकेट की पिच पर सिक्सर सिद्धू के नाम से मशहूर नवजोत सिंह सिद्धू ने जब हाथ से बल्ला छोड़ा तो सियासत की पिच पर बैटिंग करने उतरे. सिद्धू ने 2004 में बीजेपी का दामन थाम लिया. सियासत के साथ साथ सिद्धू ने मायानगरी के नाम से मशहूर मुंबई में टीवी की दुनिया में भी खूब जलबा बिखेरा. इसके साथ ही सिद्धू ने क्रिकेट कमेंट्री की दुनिया में भी हाथ आजमाया, लेकिन ये सब सिद्धू के लिए सिर्फ पार्ट टाइम था. सिद्धू तो सियात की पिच पर कप्तान बनकर खेलना चाहते थे. पंजाब में बीजेपी और अकाली दल का साथ सिद्धू को सियासी पिच पर रास नहीं आ रहा था. 2012 में सिद्दू की जगह अमृतसर से बीजेपी ने अरुण जेटली को मैदान पर उतार दिया. यहीं से सिद्धू को बगावत का मौका मिल गया. सिद्धू को मनाने के लिए बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा, लेकिन सिद्धू ने राज्यसभा से इस्तीफा देकर सियासी पिच पर नई टीम से अपनी पारी शुरू करने का मन बना लिया और बीजेपी को अलविदा कह दिया. सिद्धू के आप के साथ जाने की खबरें भी मीडिया में आई लेकिन उनकी तलाश कांग्रेस में जाकर खत्म हुई. यहां कांग्रेस के पुराने खिलाड़ी कैप्टन अमरेंद्र सिंह के साथ उनका शुरू से ही 36 का आंकड़ा रहा. अमरेंद्र सिंह पहले से ही कांग्रेस के कप्तान थे और सिद्धू कप्तान बनना चाहते थे. अब एक टीम में भला दो कप्तान कैसे रह सकते हैं दोनों एक दूसरे का विकेट गिराने की फिराक में रहते थे. कैप्टन का विकेट गिराने में सिद्धू ने दिल्ली तक ऐसी फील्डिंग जमाई की कैप्टन अमरेंद्र सिंह का सियासत की पिच से रिटायर्ड होना पड़ा, लेकिन यहीं से सिद्धू का खराब समय शुरू हो गया. सिद्धू को लगा अमरेंद्र सिंह के जाने के बाद पंजाब की कप्तानी उन्हें मिलेगी लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने चनी को कमान दे दी. अब गुरू अपनी ही फेंकी गुगली में फंस गए. सिद्धू ने भी बाउंसर फेंकते हुए अपना इस्तीफा हाईकमान को भेज दिया. अब देखना ये है कि सिद्धू की बगावत पर हाईकमान कैसे पानी डालती है और पूरे सियासी ड्रामे को कैसे सांत करती है.