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मार्च महीने में जून जैसी गर्मी होने का यह है बड़ा कारण, हो जाएं अलर्ट
मार्च महीने में ही उत्तर भारत (North India) की कई जगहों पर लू के थपेड़े चल रहे है। मौसम विभाग ने हीट वेव का अलर्ट जारी करना शुरू कर दिया है। भारत की बात करें तो अमूमन यहां अप्रैल से गर्मी (Heat) पड़नी शुरू होती है और मई-जून में भीषण गर्मी होती है। इन्हीं महीनों में हीट वेव (Heat Wave) यानी लू चलता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह क्रम बदला है। इस बार तो मार्च से ही तेज गर्मी पड़ने लगी है। ऐसा नहीं है कि केवल भारत (India) में ही ऐसा हाल है। पूरी दुनिया जलवायु संकट से जूझ रही है और दुनिया (World) के कई देशों में गर्मी बढ़ रही है।
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आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों जगह बढ़ रही गर्मी
यहां तक कि धरती के ध्रुव (Pole) भी इस असर से अछूते नहीं हैं। ध्रुवों पर भी मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। आर्कटिक और अंटार्कटिक (Antarctic) दोनों जगह गर्मी बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन को लेकर एक बार फिर वैज्ञानिकों ने आगाह किया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि पृथ्वी के ध्रुवों पर एक साथ गर्मी बढ़ी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अंटार्कटिक पठार स्थित कॉनकॉर्डिया स्टेशन पर अमूमन वहां का तापमान -50 डिग्री तक हुआ करता है, लेकिन हाल के दिनों में वहां -20 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया है। अंटार्कटिका के कुछ हिस्से औसत से 70 डिग्री (40 डिग्री सेल्सियसद्ध से ज्यादा गर्म हैं) आर्कटिक (Arctic) के क्षेत्र के कुछ हिस्से औसत से 50 डिग्री (30 डिग्री सेल्सियस) ज्यादा गर्म हैं।
क्यों गर्म हो रहे हैं पृथ्वी के ध्रुव
धरती के दोनों ध्रुवों पर एक साथ बर्फ पिघल रहे हैं। इस स्थिति ने जलवायु विशेषज्ञों (Climate Experts) को हैरान कर दिया है। ऐसा अब तक नहीं देखा गया है कि दोनों ध्रुवों पर एक साथ बर्फ पिघल रही हो। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना था कि अंटार्कटिक के तापमान (Temperature) में गर्मी के बाद फिर से गिरावट हो सकती है। आर्कटिक पर भी धीरे-धीरे ऐसी स्थिति ही देखने को मिलती रही है, लेकिन दोनों ध्रुवों पर एक साथ पिघलते बर्फ को देख साइंटिस्ट (Scientist) हैरान हैं। नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के एक वैज्ञानिक वॉल्ट मेयर का कहना है कि यह अप्रत्याशित स्थिति है। दोनों ध्रुवों पर जिस तरह एक साथ तापमान में तेजी देखी गई है, इसे वैज्ञानिकों ने धरती की जलवायु में अभूतपूर्व परिवर्तन बताया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ध्रुवों पर बर्फ के लगातार पिघलने से नई परेशानियां पैदा हो सकती हैं। बर्फ के तेजी से पिघलने से समुद्र में जलस्तर तेजी से बढ़ेगा और ऐसे में दुनिया के कई हिस्सों में समुद्री तट पर बसे इलाकों के डूबने का खतरा होगा।