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हिमाचल में बिजली परियोजनाओं को देना होगा वाटर सेस ,4 हजार करोड़ की होगी आय
शिमला। हिमाचल प्रदेश में बिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस लागू करने के लिए कानून बन गया है। विधानसभा में आज वाटर सेस कानून को संशोधनों के साथ मंजूरी दे दी गई। इसके बाद प्रदेश में चल रही 172 बिजली परियोजनाओं और आने वाले समय में लगने वाले प्रोजेक्टों पर इसे लागू किया जाएगा। सदन में डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की तरफ से पेश किए गए विधेयक पर बीजेपी विधायक रणधीर शर्मा ने दो संशोधन दिए थे। उनके संशोधनों को मानकर सरकार ने विधेयक में इन्हें शामिल करने की मंजूरी दी है। संशोधन के अनुसार वाटर सेस लागू करने के लिए प्रदेश में बनने वाले आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति का दायरा बढ़ाया जाएगा। अध्यक्ष पद के लिए सचिव रैंक के अधिकारी के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों इंजीनियरिंग, वित्त, कानून, एवं सांख्यिकी के अलावा मैनेजमेंट से जुड़े विशेषज्ञों की तैनाती की जा सकेगी। इनके पास कम से कम 15 साल का अनुभव होगा और किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं होंगे। इसी तरह से सदस्यों की नियुक्ति भी अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों के माध्यम से की जाएगी।
कानून का असर प्रदेश की जनता पर नहीं पड़ेगा
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के हस्तक्षेप के हस्तक्षेप के बाद डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने विधेयक को संशोधनों के साथ पारित करने के लिए रखा, जिसे मंजूरी दे दी गई। इससे पहले विधेयक पर चर्चा हुई जिस पर मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि इस कानून का असर प्रदेश की जनता पर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आज सरकार को कठिन वित्तीय परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए संसाधन जुटाने की जरूरत है और इसलिए विपक्ष को भी इसमें सहयोग देना चाहिए।जल विद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाकर राज्य को 4 हजार करोड़ रुपए की आय होगी।
रणधीर शर्मा ने कहा- विधेयक में कई कमियां हैं
विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि वह पूंजीपतियों का संरक्षण नहीं कर रहे हैं और चाहते हैं कि हिमाचल के लिए आय के साधन बढ़े। परंतु इस विधेयक में कई कमियां हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने पूछा कि जब विधानसभा सत्र शुरू होना ही था तो क्यों रातों रात सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा। यह साफ नहीं है कि पुराने बिजली उत्पादकों से भी यह सेस लिया जाएगा या फिर भविष्य की कंपनियों से ही लिया जाएगा। उनका कहना था कि परियोजना उत्पादकों से सरकार रॉयल्टी भी लेती है और अपफ्रंट प्रीमियम भी लिया जाता है, यदि इस पर सेस लगाएंगे तो जनता पर अपरोक्ष रूप से इसका बोझ पड़ सकता है। इसमें कानूनी अड़चनें आ सकती हैं। साथ ही 5 मेगावाट के प्रोजेक्ट हिमाचलियों के हैं, जिन पर भी यह बोझ होगा। उनका कहना था कि सरकार को हर मामले को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए। कांग्रेस के विधायक राजेश धर्माणी ने सरकार को सुझाव दिया कि सिंचाई के लिए जो पानी दूसरे राज्य इस्तेमाल कर रहे हैं क्या उनसे इस तरह का सेस लिया जा सकता है, सरकार को इस पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने श्री रेणुका जी प्रोजेक्ट का भी उदाहरण दिया। विधायक जनक राज ने वाटर सेस में जिला व स्थानीय पंचायत की हिस्सेदारी की मांग उठाई।
बीजेपीसेस का विरोध नहीं कर रही पर जनता पर बोझ ना पड़े
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि बीजेपी इस सेस का विरोध नहीं कर रही है। ऐसे रास्ते सरकार को वित्तीय परिस्थितियों के मद्देनजर निकालने होंगे। मगर यह तय किया जाना चाहिए कि इसका बोझ आम जनता पर ना पड़े। उन्होंने कहा कि उद्योगों को जो बिजली दी जाती है वह महंगी नहीं होनी चाहिए क्योंकि पड़ोसी राज्य लगातार बिजली सस्ती कर रहे हैं और उद्योग वहां की तरफ पलायन कर रहे हैं, जिसे रोकना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि वाटर सेस लगाना था लेकिन अध्यादेश लाने में इतनी जल्दबाजी क्यों कर दी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड ने 5 मेगावाट से नीचे के प्रोजेक्टों पर सेस नहीं लगाया है। उन्होंने सोलर पावर को बढ़ावा देने की बात कही