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प्रणब मुखर्जी ने Congress छोड़ी पर नहीं छूट पाया कांग्रेस शब्द से लगाव, कुछ ऐसा था उनका राजनीतिक करियर
नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणव मुखर्जी आज हमारे बीच नहीं हैं। भारतीय राजनीति में छह दशक का लंबा सफर तय करने वाले प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक सफर कई उतार चढ़ाव से होकर गुजरा है। एक वक्त ऐसा भी आया जब पूर्व पीएम राजीव गांधी की कैबिनेट में जगह ना मिलने से प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस (Congress) को अलविदा कहकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। प्रणब मुखर्जी का कांग्रेस से कितना लगाव था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस छोड़कर भी वह कांग्रेस शब्द से पीछा नहीं छोड़ पाए। उन्होंने समाजवादी कांग्रेस (samajwadi congressनाम से पार्टी का गठन किया। लेकिन, अलग पार्टी का गठन प्रणब मुखर्जी के लिए कोई खास नहीं रहा।
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जब तक राजीव गांधी सत्ता में रहे प्रणब मुखर्जी राजनीतिक वनवास में ही रहे। इसमें बाद 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा हुआ और समाजवादी कांग्रेस पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में हुआ। इसके बाद साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव पीएम बने, उस दौरान प्रणब मुखर्जी का कद बढ़ा। प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के कदावर नेताओं में शूमार थे। वह पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के कैबिनेट में सहयोगी भी रहे और बाद में सर भी बनें। जी हां मनमोहन सरकार में उनके पास वित्त, रक्षा व विदेश अहम मंत्रालयों का कार्यभार था। उनकी गिनती मनमोहन सिंह के बाद दूसरे नंबर पर की जाती थी। इसके बाद जुलाई 2012 से जुलाई 2017 तक वह भारत के राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति बनकर वह सर्वोच्च पद पर कायम हुए। मनमोहन सिंह के सर बने। अब क्या प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाकर कांग्रेस ने सही किया या फिर सक्रिय राजनीति में प्रणब की जरूर ज्यादा थी, यह कांग्रेस से ज्यादा कोई नहीं जान सकता है।
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प्रणब मुखर्जी ने 1969 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के समय राजनीति में एंट्री की थी। वह कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए। 1973 में वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए और उन्हें औद्योगिक विकास विभाग में उपमंत्री की जिम्मेदारी दी गई। प्रणब मुखर्जी 1975, 1981, 1993, 1999 में फिर राज्यसभा के लिए चुने गए। 1980 में राज्यसभा में कांग्रेस के नेता बनाए गए। प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी की कैबिनेट में वित्त मंत्री थे। यहीं नहीं 1984 में यूरोमनी मैगजीन ने प्रणब मुखर्जी को दुनिया के सबसे बेहतरीन वित्त मंत्री के तौर पर सम्मानित किया था। ऐसे मौके भी आए जब प्रणब मुखर्जी पीएम बनते-बनते रहे। बात करते हैं साल 1984 की। जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को पीएम पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था। वह भी पीएम बनने की इच्छा भी रखते थे, लेकिन शायद कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। उस दौरान राजीव गांधी को पीएम चुन लिया गया।
हालांकि, वह पीएम बनने के इच्छुक नहीं थे। जिस वक्त पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी बंगाल के दौरे पर थे। वह एक साथ विमान से आनन-फानन में दिल्ली लौटे थे। 1998 में कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी ने संभाली। उस वक्तप्रणब मुखर्जी उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। साल 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी। इस दौरान प्रणब मुखर्जी को वित्त से लेकर विदेश मंत्रालय का कार्यभार मिला। साथ ही कांग्रेस पार्टी के संकट मोचक की भूमिका में भी रहे। इसी बीच कांग्रेस की राजनीति में एक नया मोड आया। प्रणब मुखर्जी को 2012 में कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। वह देश के 13वें राष्ट्रपति चुने गए। 26 जनवरी 2019 को देश के लिए उनके अमूल्य योगदान के लिए मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। बेशक पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आज हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन देश के वित्त, विदेश मंत्री और राष्ट्रपति पद तक का सफर उनका ना भुलाए जाना वाला सफर है। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी।