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फतेहपुर कौन करेगा फतेह, क्या गुटबाजी से चौथी बार दूर रहेगी सीट, पढ़ें कौन-कौन रेस में
फतेहपुर। हिमाचल बीजेपी (Himachal BJP) का चिंतन शिविर शिमला में चल रहा है। बीते रोज हिमाचल बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक हुई थी। आज 2017 विधानसभा चुनाव के बीजेपी के सभी प्रत्याशियों को भी शिमला बुलाया गया है। बताया जा रहा है कि बीजेपी इन बैठकों में कोरोना के दौरान किए कामों पर तो चर्चा हो हो रही है, लेकिन ज्यादा जोर उपचुनाव को लेकर है। पिछली कड़ी में हमने आपको मंडी लोकसभा क्षेत्र के बीजेपी के संभावित नामों के बारे में बताया था। ऐसे में आज फतेहपुर (Fatehpur) विधानसभा सीट पर बात करते हैं। फतेहपुर में भी बीजेपी (BJP) के भीतर ही एक अनार दो बीमार वाली स्थिति है। यहां सीधी-सीधी जंग है बीजेपी के पूर्व प्रत्याशी और सांसद रह चुके कृपाल परमार (Kripal Parmar) और बलदेव ठाकुर के बीच। देखना होगा कि संगठन कृपाल परमार पर कृपा करता है कि बलदेव ठाकुर (Baldev Thakur) के बल पर भरोसा जताया जाता है। फतेहपुर विधानसभा ज्यादा दिलचस्प इसलिए भी है क्योंकि यहां बीजेपी हर बार अपनी गुटबाजी की वजह से ही चारों खाने चित हो जाती है। खैर उन बातों का जिक्र भी करेंगे। सबसे पहले बात करते हैं जिन नामों को लेकर चर्चा चल रही है, सभी हलकों पर।
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बलदेव ठाकुर
सबसे पहले बात करते हैं बलदेव ठाकुर की। इनका हालिया बयान है कि बीजेपी का कर्मठ सिपाही हूं। प्रदेश बीजेपी कार्यसमिति का सदस्य भी हूं। पार्टी में वापसी हुई है। उपचुनाव के लिए तैयार हूं। जन संपर्क अभियान शुरू किया है। पार्टी की टिकट पर जीत हासिल करूंगा। दरअसल बदलेव ठाकुर 2012 का चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि इन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2017 में बीजेपी ने इन्हें टिकट नहीं दिया तो ये आदाज ही मैदान में कूद गए और फिर हार गए। दिलचस्प यह है कि 2009 में यहा से बीजेपी के लिए बलदेव चौधरी मैदान में थे और 2012 में बलदेव ठाकुर लेकिन पार्टी की गुटबाजी ने दोनों को विधायकी तक नहीं पहुंचने दिया और 2017 के चुनाव में बलदेव ठाकुर ने बीजेपी के उम्मीदवार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बागी होने के बाद हाल ही में पार्टी में वापसी हुई है और टिकट को लेकर इन्होंने बयान देकर माहौल बनाना तो शुरू कर ही दिया है। ऐसे में देखना होगा कि आखिर इनके पक्ष में पार्टी के भीतर माहौल बनता है या नहीं।
कृपाल परमार
कृपाल परमार पूर्व राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। 2017 में बीजेपी ने इन्हें बलदेव ठाकुर पर तरजीह देते हुए टिकट दिया, लेकिन पीएम की रैली के बावजूद ये हार गए। वजह बने बीजेपी से ही बागी हुए लोग। इसके अलावा इन पर कुछ लोग बाहरी होने का तमगा चस्पां करने में लगे रहते हैं। कुछ समय पहले ही यहां पर कुछ पोस्टर भी लगे थे। बीजेपी का पुराना नाम हैं, लेकिन ये भी धूमल के खासमखास माने जाते हैं। 2017 में बीजेपी की गुटबाजी के ये भी शिकार बने और मात्र 1284 मतों से हार का इन्हें सामना करना पड़ा। चूंकि ये सीट कांग्रेस के पास थी। इनके साथ एक नफा ये जुड़ा है कि इन्हें इलाके में ज्यादा पहचान की जरूरत नहीं है। काफी समय से सक्रिय भी हैं। पीछली बार भी पंकज, बलदेव व पूर्व जिलापरिषद जगदेव ठाकुर टिकट की दौड़ में थे, लेकिन तीनों की आपसी लड़ाई में परमार टिकट लेने मे कामयाब रहे थे।
रीता ठाकुर
इस नाम की चर्चा इसलिए भी है कि बीजेपी नेताओं की आपसी लड़ाई में ये नेत्री फायदा उठा सकती है। बीजेपी हाईकमान वैसे भी महिलाओं को तरजीह देने की बात करता है तो ऐसे में हाईकमान दो की लड़ाई में रीता ठाकुर की भलाई वाला काम कर सकता है। महिला चेहरा हैं और पूर्व वायस चेयरपर्सन भी रह चुकी हैं। ऐसे में बीजेपी अंदरूनी गुटबाजी को शांत करने और नारी सश्क्तिकरण के नाम पर इन्हें टिकट थमा सकती है, क्योंकि बीजेपी 2009 से यहां अपनी गुटबाजी के कारण हारती आ रही है। इसलिए आलाकमान रीता के नाम पर समहति बना अन्य गुटों को शांत कर सकता है। वैसे रीता ठाकुर व उनके पति जो गोलवां पंचायत के प्रधान भी हैं। मंत्री राकेश पठानिया और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नजदीकी माने जाते हैं।
पकंज शर्मा
एक नाम और जिसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चा है। पंकज शर्मा उर्फ हैप्पी की। मौजूद समय में भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। 2017 में भी पंकज टिकट की दौड़ में थे, लेकिन दौड़ पूरी नहीं कर सके। इकलौता फैक्टर जो इनके पक्ष में है वो इनका युवा होना है। 2012 में आजाद भी चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि उस समय परिवार कांग्रेस के खेम में था, लेकिन अब बीजेपी में युवा मोर्चा के उच्च पदों पर कमान संभाले हुए हैं।
फतेहपुर में बीजेपी की गुटबाजी का इतिहास
फतेहपुर में बीजेपी की बात करते हैं। डॉ. राजन सुशांत (Dr. Rajan Sushant) के 2009 में लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने बलदेव चौधरी को मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब धूमल के नेतृत्व में सरकार ने बलदेव की जीत के लिए पूरा जोर लगाया था। मगर पार्टी की आपसी गुटबाजी में उपचुनाव में सुशांत के बड़े भाई मदन शर्मा ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा, जो बीजेपी की हार का मुख्य कारण बने। वहीं, 2012 के चुनाव में बीजेपी ने बलदेव ठाकुर को टिकट थमाई। तब डॉ. सुशांत की पत्नी ने बतौर आजाद प्रत्याशी चुनाव लड़ा और बीजेपी की नैया फिर पार नहीं लग सकी। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने फिर नए चेहरे के रूप में राज्यसभा के पूर्व सदस्य कृपाल परमार पर दांव खेला, लेकिन पार्टी से छिटके बलदेव ठाकुर भी मैदान में उतर आए। इस कारण बीजेपी को फिर अपनों के कारण हार का मुंह देखना पड़ा। बीजेपी की गुटबाजी के चलते ही कांग्रेस नेता सुजान सिंह पठानिया ने जीत की हैट्रिक लगा दी। बीजेपी पिछले तीन चुनाव में अपनों के बगावती तेवरों से जीत से दूर रही।
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