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शिमला। हमीरपुर (Hamirpur) की सड़कों पर कड़ाके की ठंड में दर-दर की ठोकरें खा रहे मनोरोगियों की परवाह न तो पुलिस (Police) को है और न हमीरपुर जिला प्रशासन को। यहां राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देशों को भी दरकिनार किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश राज्य मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के सदस्य और उमंग फाउंडेशन (Umang Foundation) के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि पुलिस और प्रशासन का यह रवैया हाईकोर्ट के जून 2015 के आदेश का भी खुला उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन व पुलिस यदि कोई कार्रवाई नहीं की तो वह हाईकोर्ट (High Court) का दरवाजा खटखटाएंगे। प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि हमीरपुर में रह रही उमंग फाउंडेशन की सदस्य चंद्रिका चौहान शहर में बेसहारा भटक रहे मनोरोगियों को मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के प्रावधानों के तहत रेस्क्यू कराने के लिए प्रशासन से गुहार लगा रही हैं। हैरानी की बात यह है कि जिला प्रशासन और पुलिस को इस कानून के बारे में कुछ भी पता नहीं है।
चंद्रिका चौहान ने निराश होकर राज्य मानवाधिकार आयोग को भी एक मनोरोगी को रेस्क्यू (Rescue) कराने के लिए पत्र भेजा। आयोग ने जिला उपायुक्त को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके बावजूद पुलिस और प्रशासन उसे रेस्क्यू नहीं करा सका। प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 5 जून, 2015 को हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर अपने फैसले में कहा था कि सड़कों पर घूमने वाले मनोरोगियों को कानून के तहत रेस्क्यू करने और अस्पताल (Hospital) पहुंचाने की जिम्मेदारी जिला पुलिस अधीक्षक की है। उन्होंने कहा कि एक आम नागरिक के नाते चंद्रिका चौहान बेसहारा मनोरोगियों के कानूनी अधिकारों का संरक्षण चाहती हैं, लेकिन प्रशासन कानून की जानकारी ना होने के कारण अदालत की अवमानना भी कर रहा है। उनका कहना है कि यदि यही रवैया रहा तो वह हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करेंगे।
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