-
Advertisement
तिब्बती Uprising Day पर सांग्ये बोले, तिब्बत में शांति केवल Middle way approach से संभव
Last Updated on March 10, 2020 by saroj patrwal
मैक्लोडगंज। लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष लोबसांग सांग्ये (President Lobsang Sangay)ने संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त से आग्रह करते हुए कहा है कि चीन के दौरे के साथ-साथ वह तिब्बत का भी दौरा कर वहां मानवाधिकारों की स्थिति को देंखें। तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस (Tibetan National Uprising Day) की 61 वीं वर्षगांठ पर एक बयान में सांग्ये ने कहा कि हम चाहते हैं कि तिब्बत में बिगड़ते मानवाधिकारों की स्थिति पर नजर रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त तिब्बत आवश्यक रूप से जाएं। उन्होंने कहा,अगर चीन की सरकार को लगता है कि निर्वासित तिब्बती, धीरे-धीरे तिब्बत मुद्दा भूल जाएंगे,तो हम एक स्पष्ट संदेश भेजना चाहते हैं कि हम अपनी बात पर बने रहेंगे। तिब्बत के अंदर तिब्बतियों का अदम्य साहस हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिए निर्वासन में हमें प्रेरित करता रहेगा।
यह भी पढ़ें: Coronavirus: डॉ. लोबसांग सांग्ये ने तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों को भेजा आशा संदेश
चीन से अलग होने की नहीं बल्कि तिब्बत के लोगों के लिए वास्तविक स्वायत्तता के “मध्यम मार्ग दृष्टिकोण” के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराते हुए उन्होंने कहा, ष्तिब्बत में शांति केवल मध्य-मार्ग दृष्टिकोण (Middle way approach) के माध्यम से बहाल की जा सकती है। इसलिए, चीनी सरकार को धर्मगुरू दलाई लामा (Dalai Lama) के दूतों के साथ बातचीत फिर से शुरू करनी चाहिए।
वर्तमान कोरोना वायरस महामारी पर, सांग्ये ने कहा कि तिब्बत के अंदर यह संदेह है कि 100 से अधिक कोरोना वायरस मामले हैं। हालांकि, चीन में बोलने की स्वतंत्रता और पारदर्शिता की कमी के कारण, हम वास्तविक पुष्टि प्राप्त करने में असमर्थ हैं। हम इस प्रकोप से प्रभावित तिब्बतियों के प्रति अपनी गहरी सहानुभूति व्यक्त करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वह कोरोना वायरस से जल्द से जल्द उभरकर बाहर आएं। याद रहे कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन हर वर्ष10 मार्च का दिन मनाता है, क्योंकि वर्ष1959 में चीनी सैनिकों ने ल्हासा में तिब्बती विद्रोह को दबा दिया था, जिससे दलाई लामा और 80,000 से अधिक तिब्बतियों को भारत और अन्य देशों में निर्वासन के लिए मजबूर होना पड़ा। लगभग 140,000 तिब्बती अब निर्वासन में रहते हैं, जिनमें से 100,000 से अधिक भारत के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। छह मिलियन से अधिक तिब्बती तिब्बत में रहते हैं।