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हिमाचल में यहां जमकर पत्थर बरसे, खून भी निकला; घबराइए मत यह लड़ाई नहीं
शिमला। राजधानी से तीस किलोमीटर दूर धामी में पत्थरों का एक अनोखा मेला लगता है। यह मेला दिवाली से ठीक दूसरे दिन मनाया जाता है। यह मेला इसी तरह से सदियों से मनाया जाता है। इसमें दो समुदायों में पत्थरबाजी होती है। इसको पत्थर का मेला या खेल भी कहा जाता है। आज भी धामी में यह मेला हुआ और दो गुटों में जमकर पत्थरबाजी हुई। यह मेला तब तक चलता रहा जब तक एक लहूलुहान नहीं हो गया। इस मेले में सैकड़ों लोग शामिल हुए।
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धामी रियासत के राजा पूरे शाही अंदाज में मेले वाले स्थान पर पहुंचे। माना जाता है कि पहले यहां हर वर्ष माता भद्रकाली को नर बलि दी जाती थी। मगर बाद में धामी रियासत की रानी सती ने इस नर बलि देने की प्रथा को बंद किया था। इसके बाद पत्थर मारने की परंपरा चल पड़ी। मेले में पत्थर की चोट लगने से यदि किसी का खून निकलता है तो मां भद्रकाली के चबूतरे में लगाया जाता है। राजवंश व लोगों का तो ये भी कहना है कि आज तक पत्थर लगने से किसी की जान नहीं गई है। पत्थर लगने के बाद मेले को बंद कर सती माता के चबूतरे पर खून चढ़ाया जाता है। साथ ही जिसको पत्थर लगता है उसका इलाज साथ लगते अस्पताल में करवाया जाता है। राज परिवार में इस दौरान यदि किसी की मौत भी हो जाए तो तो पहले मेले की रस्म निभाई जाती है, उसके बाद दाह संस्कार किया जाता है।