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सुप्रीम कोर्ट ने दिए होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को हिमाचल सरकार को सौंपने के आदेश
Wild Flower Hall Case: शिमला। हिमाचल सरकार को होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल (Hotel Wild Flower Hall) मामले में बड़ी राहत मिली है, जबकि ओबरॉय ग्रुप के फ्लैगशिप ( EIH)को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी शिमला के होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को हिमाचल सरकार को सौंपने के हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) के आदेश को बरकरार रखा है। ओबरॉय ग्रुप को एक साल में संपति हिमाचल सरकार को सौंपने के आदेश जारी किए हैं। जनवरी के पहले सप्ताह में हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की एक याचिका को स्वीकार कर लिया था और अब शिमला के मशोबरा में स्थित ऐतिहासिक लक्जरी संपत्ति को खाली करने का निर्देश दिए है।
सीएम सुक्खू ने किया फैसले का स्वागत
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू (CM Sukhwinder Singh Sukhu) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वाइल्ड फ्लावर हॉल की संपति प्रदेश के लिए अहम है। सरकार ने मामले की पैरवी के लिए नामी गिरामी वकील दिए जिससे उनके पक्ष में फैसला आया है। सरकार अब सभी पहलुओं की जांच परख के बाद आगे बढ़ेगी।
पिछले साल 17 नवंबर को हाईकोर्ट के एक आदेश ने राज्य को होटल पर तत्काल कब्ज़ा करने की अनुमति दी थी, लेकिन जैसे ही पर्यटन विभाग (Tourism Department) संपत्ति को जब्त करने के लिए आगे बढ़ा, अदालत ने स्थगन आदेश जारी कर दिया। ओबराय ग्रुप को हिमाचल हाई कोर्ट ने भी संपति सरकार को देने के आदेश दिए थे। ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली है। अब ओबराय ग्रुप को संपति एक साल में सरकार को लौटानी होगी।
क्या था आखिर मामला
होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम ( HPTDC) संचालित करता था। वर्ष 1993 में यहां आग लग गई। इसे दोबारा पांच सितारा होटल के रूप में विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए गए थे।
टेंडर प्रक्रिया में ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया। राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स( EIH) के साथ साझेदारी में कार्य करने का फैसला लिया था। संयुक्त उपक्रम के तहत ज्वाइंट कंपनी मशोबरा रिजॉर्स लिमिटेड के नाम से बनाई गई और तय किया गया कि राज्य सरकार की 35 फीसदी से कम शेयर होल्डिंग नहीं होगी। इसके अलावा ईआईएच की शेयर होल्डिंग भी 36 फीसदी से कम नहीं होगी।
ये भी तय हुआ था कि ईआईएच को 55 फीसदी से अधिक होल्डिंग नहीं मिलेगी। लेकिन करार के मुताबिक जमीन सौंपने के बाद चार साल में भी होटल फंक्शनल नहीं हुआ था। उसके बाद जब कंपनी होटल को चलाने के काबिल नहीं बना पाई तो 2002 में राज्य सरकार ने करार रद्द कर दिया था। लेकिन बोर्ड ऑफ कंपनी ने फैसला कंपनी को दे दिया।
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार राज्य सरकार को इस होटल की संपत्ति का अधिकार मिल गया है।