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अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी मिलेगा पैतृक संपत्ति में हिस्सा: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले (Historic Decision) में कहा कि अमान्य विवाह (Void Marriage) से पैदा हुए बच्चों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में हक मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे बच्चों को भी वैध कानूनी वारिसों के साथ हिस्सा मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले के बाद अब हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाया जाएगा।
11 साल पुराने मामले का निपटारा करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह साफ कर दिया कि हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत प्राप्त यह अधिकार अब अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी मिल गया है।
क्या कहता है हिंदू विवाह अधिनियम?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act 1955) के तहत किसी विवाह को दो आधार पर अमान्य माना जाता है- एक विवाह के दिन से ही, दूसरे जिस दिन अदालत अमान्य घोषित कर दे। ऐसे विवाह से पैदा हुए बच्चों को माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग को लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच ने पूर्व के फैसलों से असहमति जताई है। कोर्ट के पूर्व के फैसलों में कहा गया कि ऐसे बच्चे अपने पूर्वजों की संपत्तियों में हक पाने के अधिकारी नहीं होंगे। साल 2011 में ही कोर्ट ने कहा था कि ‘मान्य और अमान्य’ शादी से हुए बच्चे केवल अपने माता-पिता की जायदाद पर दावा कर सकते हैं, किसी और की संपत्ति पर नहीं।
इन 4 बिंदुओं पर आया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद चार बिंदुओं में अपना फैसला सुनाया। सीजेआई ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के उप-धारा 1 के तहत अमान्य विवाह के तहत पति-पत्नी के बच्चे कानून की नजर में वैध हैं। उप-धारा 2 के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे वैध हैं। चूंकि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे भी वैध हैं, इसलिए उनका अपने माता-पिता की संपत्ति में हक होगा।
अमान्य विवाह की ये हैं चार परिभाषाएं
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, अमान्य विवाह को ‘void ab initio’ के रूप में परिभाषित करता है, जिसका अर्थ है कि यह शुरू से ही अमान्य है। अधिनियम निम्नलिखित आधारों पर विवाह को अमान्य घोषित करता है: विवाह बंधन में बंधे लड़का, लड़की या दोनों की उम्र निर्धारित सीमा से कम हो। लड़का या लड़की में से कोई एक पहले से ही किसी अन्य व्यक्ति से विवाहित हो। कोई एक या दोनों का रिश्ता ऐसा हो, जिसमें विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती है। या फिर विवाह कानून के अनुसार नहीं किया गया हो। किसी भी पक्ष को डरा-धमकाकर या धोखे से विवाह के लिए राजी किया गया हो तो भी वह अमान्य है। कुछ ऐसे भी विवाह को अदालत अमान्य करार देती है। ऐसे में जब तक अदालत से अमान्य घोषित नहीं हो, विवाह मान्य होता है।