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नोटबंदी के साए में भारतीय अर्थव्यवस्था, सफलता गिनाने के लिए सरकार के पास कुछ भी नहीं
नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को झकझोर देने वाला दिन था 8 नवंबर 2016। पीएम मोदी ने देश को संबोधित करते हुए 500 और 1000 के पुराने नोट के प्रचलन पर रोक लगा थी। जिस पर कहा गया था कि भारत में कालाधन पर यह मास्टर स्ट्रोक है। इससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। कालाधन खत्म होगा। औपचारिक अर्थव्यवस्था में लोग शामिल होंगे। नकद का प्रचलन घटेगा।
लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने पांच साल बाद यह जानकारी दी है कि भारत के लोगों के हाथों में यानी नकद ऐतिहासिक स्तर पर है। नोटबंदी से ठीक चार दिन पहले यह 17.5 ट्रिलियन रुपए था, जोकि 8 अक्टूबर, 2021 को यह 57 फीसदी के जबरदस्त उछाल के साथ 28 ट्रिलियन रुपए पर पहुंच चुका है। इसका मतलब यह की भारत के जीडीपी में नकद अनुपात बढ़कर 14.5 फीसदी हो गया है। जो आजादी के बाद अभी तक सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही भारत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में नकद जीडीपी अनुपात वाले देशों की रैंकिंग में शामिल हो चुका है।
याद कीजिए, नोटबंदी समय के दावे तो मोदी सरकार (Modi Government) और उनके समर्थक यह कहते नहीं थकते थे कि इससे नकद का प्रचलन बाजार में खत्म हो जाएगा और डिजिटल पेमेंट को इससे बढ़ावा मिलेगा। लेकिन उनका यह कथन उतना ही सत्य था जिनका कि महाभारत में युधिस्ठिर का यह कहना,’अश्वथामा हतो हता नर कुंजरो वा…’। भारत में नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट को तो बढ़ावा मिला, लेकिन नकद प्रचलन में कमी नहीं आई। वह भी डिजिटल पेमेंट के साथ ही सतत बढ़ता चला गया। इसके कई कारण बीते पांच बरस बाद उभर कर सामने आए हैं।
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वहीं, कोरोना काल के दौरान नकद अनुपात बढ़ता ही चला गया और महामारी में तो इसकी मांग और अधिक बढ़ गई। इसके साथ ही जानकार कहते हैं कि यह सच है कि नकद-जीडीपी अनुपात में वर्तमान बढ़ोतरी महामारी के बाद जीडीपी में आई सिकुड़न को भी दर्शाती है। लेकिन ऐसा लगता है कि जीडीपी में सुधार होने के बाद भी जनता के हाथ में मौजूद मुद्रा मे कोई खास कमी नहीं आएगी, क्योंकि बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में नकद की संस्कृति का दबदबा बना रहेगा।
उन्होंने बताया कि आरबीआई (RBI) के डेटा अनुसार यूपीआई, क्रेडिट कार्डों और डेबिट कार्ड के जरिए भुगतान में जरूर भारी बढ़ोतरी हुई है। 2018 में आरबीआई का डिजिटल पेमेंट इंडेक्स 100 पर था, अब बढ़कर 270 पर पहुंच गया है। यह लगभग 200 फीसदी की प्रभावशाली वृद्धि है। यानी नकद और डिजिटल भुगतान देनों में ही वृद्धि हो रही है और यह उन नीति निर्माताओं के लिए एक सबक के समान है, जिन्होंने हर नकद को संदेहास्पद मान लिया था और जिन्हें यह लगा था कि डिजिटल भुगतान (Digital Payment) से अनिवार्य तौर पर नकद अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा।
आर्थिक विश्लेषकों कहा कहना है कि भारत में अनौपचारिक अर्थजगत हमेशा नकदी से ही चलता आया है। उन्होंने बताया कि भारत में अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में देश की नब्बे फीसदी आबादी काम करती है। जिनकी महीने की तनख्वाह 15 हजार रुपए से कम है। और वे अपनी कमाई का अधिकांश हिस्सा नकद के रुप में ही खर्च करते हैं। सरकार ने जब उन्हें जबरदस्ती डिजिटल की ओर धकेलने का प्रयास किया तो इसके सकारात्मक परिणाम नहीं निकले।
इसके साथ ही उनका कहना है कि भारत की आधी आबादी को यह बात बखूबी मालूम है कि देश में कालाधन का सबसे अधिक उपयोग रियल स्टेट यानी जमीन के खरीद फरोख्त और सोने के रुप में किया जाता है। लेकिन आज तक इसके ठोस समाधान में सरकार ने कोई ठोस रणनीतिक कदम नहीं उठाया। बल्कि सिर्फ नकद पर वार कर अच्छे परिणाम मिलने के उम्मीद में बैठ गई। उन्होंने कहा कि आज भी देश के ज्यादातर हिस्सों में संपत्ति की खरीद-बिक्री का बड़ा हिस्सा काले धन में हो रहा है। जीएसटी प्रणाली से वैल्यू चेन की सभी-खरीद बिक्री का हिसाब रखने की उम्मीद की गई थी, लेकिन सबूतों की मानें, तो कई उत्पादों में मूल्य संवर्धन (वैल्यू एडिशन) की पूरी कड़ी जीएसटी के ढांचे से बाहर है।
इसके साथ ही नोटबंदी के ठीक एक साल बाद सरकार ने जीएसटी की घोषणा कर दी। जीएसटी के अमलीकरण से अब तक के लगभग पांच वर्षों में जीएसटी संग्रह 95,000 करोड़ से 1,10,000 करोड़ रुपये तक ही सीमित रह गया है। सामान्य तौर पर जीएसटी की वृद्धि को जीडीपी वृद्धि के साथ कदमताल मिलाकर चलना चाहिए था। इसका अर्थ है कि जीएसटी राजस्व को हर साल कम से 10 से 11 फीसदी की दर से बढ़ना चाहिए था और पांच साल में इसमें कुल 60 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि होनी चाहिए थी। लेकिन जीएसटी संग्रह में अगले साल तक, यानी इस नयी कर प्रणाली के प्रभाव में आने के पांच साल बाद, ऐसी वृद्धि का कोई संकेत नहीं मिलता है।
इसके साथ ही सरकार के उस दावे पर भी सवाल खड़े किए, जिन्हें सरकार नोटबंदी के वक्त करती थी। उन्होंने सरकार से पूछा कि नोटबंदी के बाद लाखों करोड़ों रुपए नकद जमा करने वालों आयकर विभाग की तरफ से नोटिस भेजे गए थे। अगर ये सिस्टम द्वारा पकड़े गए नए करदाता थे, तो आनेवाले वर्षों में टैक्स-जीडीपी अनुपात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी क्यों नहीं हुई। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को भारी और लंबे समय तक रहने वाला नुकसान पहुंचाया है, जिसका दस्तावेजीकरण होना अभी बाकी है, सिर्फ इसलिए क्योंकि मोदी सरकार ने इस पूरे प्रकरण को वैचारिक चश्मे से देखने का फैसला किया।