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डोले राम का कमाल, लकड़ी की बेजान मूरत में भी डाल देते हैं जान
संजीव कुमार/गोहर। सराज विधानसभा क्षेत्र के थाची गांव के काष्ठ कारीगर डोले राम ने एक अद्भुत कलाकृति को लकड़ी पर उकेरकर अपनी कला को उजागर किया है। लकड़ी को एक नया स्वरूप देने पर मानो ऐसा लगता है कि तराशी गई लकड़ी की बेजान मूरत बोलने को व्याकुल हो उठे। लकड़ी का मूर्तिकरण कला साधक की ऊंचाई का प्रमाण है। सरकार को चाहिए कि ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहन देकर हिमाचल गौरव के रूप में इन्हें ख्याति प्राप्त हो। इन कलाकृतियों को देखने के बाद दर्शक व कला की समझ रखनेवाले लोग कह उठते हैं- शाबाश। चिंतन व चित्रण की दृष्टि से कला की एक नई जमीन तैयार की जा रही है।
फोटो में डोले राम एक निजी घर के छत की सीलिंग पाइलिंग का निर्माण कर रहा है जिसमें काष्ठ कला को एक बेहतरीन रूप से पिरोया गया है। 27 वर्षीय डोले राम ने 18 वर्ष की उम्र से ही काष्ट कला से जादू बिखरने का हुनर सीखा है। काष्ठकार डोले राम ने कहा कि अब तक अपनी काष्ठ कला के जरिए लगभग 50 देव मंदिरों का निर्माण कर कारीगरी का लोहा मनवा चुका है। वर्तमान में आजकल माता बगलामुखी बाखली के भंडार (आवास कोठी ) के निर्माण कार्य पर जुटा है। लेकिन देश में लॉकडाउन की वजह से घर में ही है। डोले राम ने बताया कि उनके पिता दामोदर सिंह बीर देवता के गुर हैं व बिट्ठू नारायण के खानदानी काष्ठ कारीगर हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता रूप सिंह ठाकुर का कहना कि सराज क्षेत्र में काष्ठकला के एक से एक बेहतरीन कलाकार है जो सराज के साथ-साथ राज्य के कई देवालयों में अपनी कला का प्रदर्शन कर अनेकों देव मंदिरों की शोभा बढ़ा चुके हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीकी के दौर में काष्ठ कलाकृति के निर्माण कार्य काफी महंगे साबित हो रहे हैं। बारीकी कढ़ाई निर्माण में कई महीनों का समय तो लगता है, लेकिन काष्ठकला एक अनूठी चीज पेश होने पर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देती है। ऐसी दुर्लभ अनुकृति बनाने वाले काष्ठ कलाकारों को हमेशा प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि ये हमारे इस अखंड समाज की रीढ़ बनी रहे। उन्होंने कहा कि डोले राम ने जो हाल ही में ये काष्ठकला की अनुकृति बनाई है ये अपने आप मे एक अनूठी है।